Book Title: Purusharth Siddhi Upay
Author(s): Amrutchandracharya, Vishuddhsagar
Publisher: Vishuddhsagar

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Page 557
________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 557 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 कुटिल-परिणति जहाँ बनी, वहाँ निश्चित ही बंध है और जहाँ कषाय परिणाम हुए, क्रोध-मान-माया-लोभपरिणति जहाँ बनी, वहाँ स्थितिबंध हो गयां इसीलिए ध्यान रखना, रत्नत्रय से बंध नहीं हैं बंध हमेशा योग और कषाय से होता हैं भो ज्ञानी! आज से अपने मन-वचन-काय की कुटिलता को बचाकर चलना और कषायों को भद्र कर लों यदि छोड़ नहीं पा रहे हो, तो कम से कम कषाय को तो मंद रखना प्रारंभ कर दो अहो! अपराधी स्वयं अपराध स्वीकार कर लेता तो सजा कम हो जाती हैं यदि तुमसे पाप हो भी गया और प्रायश्चित भी कर लियां भो ज्ञानी! पाप में ऋजुता आ जाती हैं हे भगवान् आत्माओ! भगवत्ता का भान कर लेना, दोषों को दोष मानकर चलनां ध्यान रखना, पुण्य के उदय में सब पाप बँक जाते हैं पुण्य की कांति का खण्डन करनेवाला पापकर्मी होता है और जिस दिन वह उदय में आ जाएगा उस दिन पुण्य तुम्हारा सम्हलेगा नहीं ध्यान रखो, तीर्थकर व चक्रवर्ती जैसे जीवों का भी पाप प्रकट हुआ तो उनकी प्रकृति उस पाप को छिपा नहीं पाईं अहो! गर्भाधान एकांत में हो सकता है, पर माँ उदर को छिपाकर कहाँ ले जाएँगी? ऐसे ही पापकर्म तुम एकांत में कर सकते हो, लेकिन ध्यान रखना, पाप के परिणाम को तुम्हें सबके सामने ही भोगना पड़ेगां LEARNERAL Roaminatantan URATRENA BRYOGeryo A S ETTERFATED Ilal वाहेलाना श्री जिन मंदिर. Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com

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