Book Title: Purusharth Siddhi Upay
Author(s): Amrutchandracharya, Vishuddhsagar
Publisher: Vishuddhsagar

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Page 538
________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 538 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 'मुनियों के बाईस परीषह' क्षुत्तृष्णा हिममुष्णं नग्नत्वं याचनारतिरलाभ दंशो मशकादीनामाक्रोशो व्याधिदुःखमङ्गमलम् 206 स्पर्शश्च तृणादीनामज्ञानमदर्शनं तथा प्रज्ञां सत्कारपुरस्कारः शय्या चर्या वधो निषद्या स्त्रीं 207 द्वाविंशतिरप्येते परिषोढव्याः परिषहाः सततमं संक्लेशमुक्तमनसा संक्लेशनिमित्तभीतेन 20& अन्वयार्थ :संक्लेशमुक्तमनसा = संक्लेश-रहित-चित्त वाले और संक्लेशनिमित्तभीतेन = संक्लेश के निमित्त से (अर्थात् संसार से) भयभीतं (साधु के द्वारा) सततम् = निरंतर ही क्षुत् तृष्णा = क्षुधा (भूख),तृषा (प्यास) हिमम् उष्णं = शीत (ठंड), उष्ण (गर्मी) नग्नत्वं याचना = नग्नता, प्रार्थनां अरतिः अलाभः = अरति, अलाभं मशकादीनां दंशः = मच्छरादिकों का काटनां आक्रोशः = क्रोधित होनां व्याधिदुःखम् गमलम् = रोग का दुःख, शरीर का मलं तृणादीनां स्पर्श = तृणादिक का स्पर्श, अज्ञानम् अदर्शनं = अज्ञान, अदर्शन ( तत्वों के प्रति अश्रद्ध होना) तथा प्रज्ञा सत्कार पुरस्कारः = इसी प्रकार प्रज्ञा,सत्कार, पुरस्कारं शय्या चर्या वधः निषद्या = शयन, गमन, वध, बैठनां च स्त्री = और स्त्री एते द्वाविंशतिः परीषहाः = ये बावीस परीषहं अपि परिषोढव्या: = भी सहन करने योग्य हैं आचार्य भगवान् अमृतचन्द्रस्वामी ने पुरुषार्थ सिद्धयुपाय ग्रंथ में श्रावकों का कथन करने के उपरान्त यति-धर्म की चर्चा की हैं जो पूर्व में पंचपरमेष्ठी की शरण में गये हैं, आज उनके समोसरण हैं और जो पूर्व में किसी की शरण में नहीं गये, वे आज दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं गृहस्थों के जीवन में कितने कष्ट हैं, कितनी यातना है, कितनी वेदना है? यति तो मात्र ये बाइस परीषह ही सहन करता हैं एक जीव संयम के Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com

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