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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 537 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
जाय तो उसकी भूल को भूलरूप में स्वीकार मत करों उसकी भूल का भी तुम सम्मान कर दो, तो तुम्हारा स्वाभिमान बढ़ जायेगां यही समय होता है हमारी सहजता के प्रमाण कां अतः क्षमा, मार्दव, आर्जव धर्म कह रहा है कि सरल बन जाओ, सहज बन जाओ, वक्रता को छोड़ दों टेढ़े मन के कारण अनेक भव तुम्हारे बिगड़ गये, अब तो सीधे हो जाओं सर्प कितना ही टेढ़ा चलता हो, लेकिन वाँमी में प्रवेश करते समय वह भी सीध हो जाता हैं मनीषियो! सिद्धशिला में प्रवेश भी ऋजुगति से ही होता हैं यहाँ तक कि सर्वार्थसिद्धि में जो देव बनता है, वह भी इस गति से ही जाता हैं वक्रपरिणाम अर्थात् जिसके परिणाम तिरछे होते हैं, वह तिर्यक-लोक में, नरकों के बिलों में प्रवेश करता हैं इसीलिए आचार्य भगवान् कह रहे हैं कि सरल बन जाओं शुचिता लाने के लिए संयमधर्म सरल हैं संयम में सम्मान के भाव नहीं आना चाहिएं इसीलिए ज्ञानीजीवन धर्म को पालता नहीं है, धर्म में जीता हैं सत्य, वाणी का विषय नहीं जीवनशैली सत्यमय हों साधु को सत्यधर्म पर दृष्टिरखना चाहिये निर्लोभता ही शौच धर्म हैं वाणी एवं इंद्रियों के प्रति अशुभ प्रवृत्ति का निरोध संयमधर्म हैं कर्मक्षय के लिये जो साधना की जाती है, वह तपधर्म हैं अशुभ भावों का त्याग करना तथा बाहर से शुद्ध निर्लोभ भाव से संयमियों को योग्य द्रव्य का देना त्यागधर्म हैं संसार एक स्वप्नवत् हैं पर्यायदृष्टि से सभी द्रव्य विनाश को प्राप्त होने वाले हैं परपदार्थ लेशमात्र भी मेरे नही हैं ऐसा विचार कर निजत्व भाव को प्राप्त करना आकिंचन्य धर्म हैं ब्रह्मात्मा का स्वसंवेंदन में लीन रहना ही ब्रह्मचर्य धर्म हैं
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