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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 534 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
अध्रुवमशरणमेकत्वमन्यताऽशौचमास्रवो जन्म: लोकवृषबोधिसंवरनिर्जराः सततमनुप्रेक्ष्याः 205
अन्वयार्थः
अध्रुवम् = अध्रुव/अनित्यं अशरणम् = अशरण, (कोई किसी का शरण नहीं ) एकत्वम् = एकत्व (अकेलापन) अन्यता = अन्यत्व ( अलग अलग ) अशौचम् = अशुचि (मल मूत्र रूपी अशुध्दि) आस्रव = आस्रव( कर्मो का आनां) जन्म: = संसारं लोकवृषबोधिसंवरनिर्जरा = लोक, धर्म, बोधिदुर्लभ, संवर और निर्जरां एता द्वादशभावनाः = ये बारह भावनायें सततम् अनुप्रेक्ष्याः = निरन्तर (बार-बार) चितवन तथा मनन करनी चाहिएं
"पुरुषार्थ देशना".
भो भव्यात्माओ! आचार्य भगवान् अमृतचन्द्र स्वामी ने अलौकिक सूत्र प्रदान किया हैं आत्मा को परमात्मा बनाने का माध्यम संयम के संस्कार हैं किसी जीव का वध कर देना, इन्द्रिय विषयों को भोग लेना तो महान असंयम है ही, जीव-वध के भाव को लाना, इन्द्रिय विषयों के सेवन के परिणामों का होना भी असंयम हैं अहो! चंचल चित्त की निवृत्ति को सुमेरू के समान स्थिर कर देने का नाम संयम हैं जिसने अपने मन को डंडे के समान स्थिर कर दिया, उसका नाम मनोदण्ड हैं वचनों को जिसने रोक लिया, वह वचन-दण्ड है और शरीर की चंचलता को जिसने रोक लिया, उसका नाम काय-दण्ड हैं इन तीन दण्डों से युक्त जो होता है, उसीका नाम त्रिगुप्ति धारक होता हैं ऐसी त्रिगुप्ति को जब तक प्राप्त नहीं किया, तब तक आप जितनी भी क्रियाएँ कर रहे हो, ठीक है, अशुभ से बचे हो, लेकिन यथार्थ मोक्षमार्ग तभी प्राप्त होगा जब तीनों गुप्तियाँ तुम्हारे पास विराजमान हो जायेंगी, अन्यथा तीन लोक के स्वामी नहीं बन पाओगे
भो ज्ञानी! पाँच समितियों के अभाव में संवर भी नहीं होता और जहाँ संवर नहीं है, वहाँ निर्जरा भी मोक्षमार्ग में प्रयोजनभूत नहीं हैं पाँच समितियों के बाद आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी ने दस धर्मों की चर्चा की हैं 'समयसार' में आचार्य कुंदकुंद महाराज कह रहे हैं
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