________________
पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 314 of 583 ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
" मत करो नवकोटि स जीवों की हिंसा"
अन्वयार्थः
यद्वत् तिलनाल्यां
जिस प्रकार तिलों से भरी हुई नली में तप्तायसि विनिहिते = तप्त लोहे की शलाका के डालने सें तिला = तिलं हिंस्यन्ते तद्वत् = नष्ट होते हैं, उसी प्रकारं मैथुने योनौ मैथुन के समय योनि में भीं बहवो जीवा हिंस्यन्ते = बहुत से जीव मरते हैं
हिंस्यन्ते तिलनाल्यां तप्तायसि विनिहिते तिला यद्वत् बहवो जीवा योनौ हिंस्यन्ते मैथुने तद्वत् 108
=
=
=
यदपि क्रियते किंचिन्मदनोद्रेकादनंगरमणादिं तत्रापि भवति हिंसा रागाद्युत्पत्तितन्त्रत्वात् 109
अन्वयार्थः
अपि = और (इसके अतिरिक्त ) मदनोद्रेकात् = काम की उत्कटता सें यत् किंचित् = जो कुछं अनंगरमणादि क्रियते = अनंग-क्रीड़ा आदि की जाती हैं तत्रापि उसमें भीं रागाद्युत्पत्तितन्त्रत्वात् = रागादिकों की उत्पत्ति
के वश में हिंसा भवति = हिंसा होती हैं
=
ये निजकलत्रमात्रं परिहर्तुं शक्नुवन्ति न हि मोहात्ं
निःशेषशेषयोषिन्निषेवणं तैरपि न कार्यं 110
अन्वयार्थः ये मोहात् जो ( जीव ) मोह के कारणं निजकलत्रमात्रं = अपनी विवाहिता स्त्री मात्र कों परिहर्तुं हि = छोड़ने को निश्चय करकें न शक्नुवन्ति तैः समर्थ नहीं है, उन्हें निःशेषशेषयोषिन्निषेवणं अपि = अवशेष अन्य स्त्रियों का सेवन तो अवश्य हीं न कार्यम् = नहीं करना चाहिएं
=
Visit us at http://www.vishuddhasagar.com
Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com
For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com