Book Title: Purusharth Siddhi Upay
Author(s): Amrutchandracharya, Vishuddhsagar
Publisher: Vishuddhsagar

View full book text
Previous | Next

Page 521
________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 521 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 पायेंगां आर्जव धर्म शील, प्रकृति, स्वभाव का ज्ञान कराता हैं यानी प्राकृतिकता (स्वाभाविकता) की ओर इंगित करता हैं आर्जव यानी निश्छलता, यानी क्रिया में मायाचारी का सत् नहीं होना अल्प-धर्म साधना करना श्रेष्ठ है, पर छलकपट सहित बहुत तपस्या व्यर्थ हैं क्योंकि वक्रपरिणाम गिरगिट के तुल्य होता है, जो कि हर समय अपने रूप बदलता रहता है, सही रूप का ज्ञान ही नही हो पातां जो न कुटिल चिंतवन करता हो, न कुटिल वचन बोलता हो, न कोई कुटिल क्रिया करता हो, उसको ही सही मायने में आर्जव-धर्म होता हैं मन में कुछ, वचन से कुछ, शरीर से कुछ, इसी का नाम मायाचारी हैं संसार में यदि कोई दुरात्मा है तो वह हैं म करने वाला जिसका मन-वचन-काय एक है, वही सच्चा महात्मा हैं यदि महात्मा बनना चाहते हो तो पहले वक्रता का विसर्जन करना होंगां दिगम्बराचार्यों ने आर्जव को पारिभाषित करते हुए लिखा है, ऋजो-र्भावःआर्जव," सरल परिणाम होना ही आर्जव हैं कौन सरल, कौन वक्र, इसका ज्ञान तो तभी संभव है जब निकट जाकर निवास करें क्योंकि नीतिकारों ने कहा है “सहवासी सः विचेष्टितम्" सहवासी ही सहवासी की चेष्टा जान सकता हैं जिसका मन सरल है, उसके पास सबकुछ है एवं जिसका मन कुटिल है उसके पास कुछ नहीं सहजता/सरलता ही उन्नति का सोपान हैं धर्म सरल हृदयी के पास होता है, वक्र-परिणामी के पास धर्म की गंध भी नहीं आ सकतीं धर्म के नाम पर आडम्बर तो दिखा सकता है, धर्म का वेष तो धारण कर सकता है, लेकिन धर्म उसके पास नहीं हो सकतां मायाचारी करने वाला तिर्यचायु का बंध करता हैं जिसे पशु योनि में जाने से भय है, उसे आत्मरक्षा हेतु मायाचारी को पूर्णरूपेण त्यागना अनिवार्य हैं सच्चाई का ज्ञान तभी होता है, जबकि स्वयं की नम्र आँखों से स्वयं का सूक्ष्मावलोकन होता हैं जब तक स्वयं की सच्चाई से परिचय न हो, तब तक स्व के परिवर्तन का कोई मार्ग नहीं सूझतां अस्तु, स्वयं का सूक्ष्म अवलोकन करों जिसका मन दृढ़ सरल, उन्नतएवं श्रेष्ठ हो गया, उसका जीवन एवं भाग्य भी समुन्न/ श्रेष्ठ होगां आर्जव- धर्म में अघ (पाप) को विखंडित करने की अद्वितीय शक्ति हैं माया व्यक्ति को धूर्तता के शिखर पर पहुँचाती है, तो ऋजुता उच्चता/महानता के शिखर पर ले जाती हैं भो भोले मानव! आर्जव-धर्म को अपने जीवन में उतारी, क्योंकि इसी से खुलेगा तेरा मुक्ति का द्वारं सरलता के बिना किसी भी कार्य की सिद्धि संभव नहीं यद्यपि सर्प वक्र चलता है, पर अपनी वामी में वह सीधा ही प्रवेश करता हैं बिना सीधे हुए प्रवेश संभव नहीं सर्प जैसे स्वस्थान नहीं पहुंचा पाता, इसी प्रकार यह निज को सरलता के बिना प्राप्त नहीं कर सकताअतः, मायाचारी को आर्जव-धर्म से नष्ट करं यदि सच्चा सुख चाहता है, तो जीवन में सरलता का परिवेष धारण करना परम अनिवार्य हैं सरलता ही दिव्यता का द्वार हैं सरलता ही दिव्यता का द्वार हैं सररलता में आत्मशांति का अक्षय भंडार समाविश हैं सरलता में ही सहजता का मेल हैं अतः, सरलता से सहजता को प्राप्त कर निज जीवन को पावन बना Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584