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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज
Page 523 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 पाण्डुपुत्रं आपने क्या अभी तक शुचित्व को नहीं पहिचाना? पवित्रता कहाँ से प्राप्त होगी? जलस्रान से शरीर स्वच्छ हो सकता है, पर पवित्र नहीं हो सकता हैं फिर उस जड़ जल से आत्मा पवित्र कैसे होगी? अतः गीता मे कहा है,
"आत्म नदी संयमतोयपूर्ण सत्यावहा शीलतटा दयोर्भि: तत्राभिषेकं कुरु पाण्डुपुत्र न वारिणा शुद्धयति चान्तरात्मा"
अर्थात् जल से परिपूर्ण सत्य को धारणप करनेवाली, शीलरूप तट, और दयामय तरंगों की धारक आत्मारूपी नदी हैं हे पाण्डुपुत्र! उसमें स्रान कर, क्योंकि अन्तरात्मा जल से शुद्ध नहीं होती हे मनीषी! निर्लोभ वृत्ति से आत्मा शुद्ध होगीं दिगम्बराचार्यों ने शौच-धर्म को परिभाषित करते हुए कहा-"प्रकर्ष प्रासलोभान्निवृत्ति शौचम्" प्रकर्ष प्राप्त लोभ का त्याग करना शौच-धर्म हैं वास्तव में उत्तम-शौच-धर्म परमतपोधन वीतरागी दिगम्बर श्रमणों के ही पूर्णतया संभव है, जिन्होंने इच्छाओं को रोककर वैराग्य रूप विचारों से युक्त होकर, आत्मसाधना ही जिनका परम लक्ष्य बन चुका, चर्या-चर्चा जिसकी एक है, उसी श्रवण के उत्तम-शौच-धर्म होता है, फिर भी आप सभी के लिए भी अभ्यासरूप से शौच-धर्म की ओर अग्रसर रहने की परम आवश्यकता हैं क्रोध आत्मा को पवित्र कर परमात्मा बनों
'सत्यता ही पवित्रता
हे चेतन! सत्य ही जीवन की परम कसौटी है, जिसके माध्यम से प्राणी के अन्तम् की परीक्षा हो जाती है एवं शीघ्र परीक्षा परिणाम भी प्रकट हो जाता हैं सत्य आत्मा की आत्मा हैं सत्यरहित सारी धर्म-क्रियाएँ खोखली हैं हे प्राणी! विचार कर कि मैंने झूठ बोलकर दूसरों को धोखा दिया है, पर सिद्धांत कहता है तूने दूसरों को धोखा नहीं, स्वयं के लिए धोखा दिया हैं दूसरों को धोखा देना स्वयं के साथ छलावा हैं झूठ या असत्य बहुत सारे पापों का जनक हैं एक असत्य को छुपाने के लिए व्यक्ति कई असत्य बोलता हैं पर ऐसा कभी नहीं हुआ कि अग्नि को रूई में छिपा लिया जाए, वह तो प्रकट होगी ही इसी प्रकार असत्य को कितना ही ढंकना, वह प्रकट हुए बिना नहीं रह सकतां सत्य को छिपाया नहीं जाता, दिखाया नहीं जाता, वह तो स्वयसेव दिव्य-ज्योतिर्मय सूर्य हैं कितने ही असत्यरूपी बादल छा जाएँ, सूर्य को ढंक लें, पर आज तक बादलों द्वारा सूर्य का विनाश नहीं हो पायां इसी प्रकार, असत्यवादी सत्यधर्म पर चाहे कितने कुहेतुओं के
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