Book Title: Purusharth Siddhi Upay
Author(s): Amrutchandracharya, Vishuddhsagar
Publisher: Vishuddhsagar

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Page 519
________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 519 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 तात्पर्य यह है कि हरे-पल/हर-क्षण हमारा क्षमा के साथ ही निकलें कौन हमारा शत्रु कौन मित्र? एक दिन इस संसार से सभी को विदा होना है, तो फिर क्यों न सभी के साथ क्षमाधर्म का व्यवहार करके इस भव में यश, पर भव में स्वर्ग/मोक्ष प्राप्त करें? "रावण का रूप है मान' हे मनीषी आत्मन्! मानव का मन मान का एक बहुत बड़ा वृक्ष है, जिसकी शाखाएँ अतिविषाक्त हैं, जिनसे मदरूपी वायु प्रवाहित होती है, जिस वायु के प्रभाव से आत्मा का तीव्र शोषण हो रहा हैं मान मानव को दानव बना देता है जिसके कारण मानव के अन्दर से मानवता मर जाती है, वह है-मानं मान के पीछे मानव मानवता खो देता हैं मान यानी अंहकारं मान में व्यक्ति अपने से पूज्यों का बहुमान खो बैठता हैं अंहकारी व्यक्ति पूज्यों का भी अनादर करने लगता हैं अहंकार व्यक्ति को कठोर बनाता हैं ध्यान रखना! अहंकार उसी व्यक्ति को आता है, जिसका कि विनाश निकट होता है, क्योंकि अहंकार पतनकारी हैं दीपक जब बुझने लगता है, उसकी ज्योति भी बड़ी हो जाती हैं इसी प्रकार अहंकारी की दशा हो जाती हैं जैसे की ज्योति बुझ जाती है, वैसे ही अहम् की ज्योति जीवनज्योति के साथ चली जाती हैं अहंकार अधोगामी है, अधोलोक-यात्रा की सूचना देनेवाला हैं अहंकारी मरना पंसद करता है, किन्तु झुकना नहीं अहंकारी सिर कटा सकता है, परन्तु सिर झुका नहीं सकतां वह तो सूखे बांस की तरह होता है, जो टूटना उखड़ना पसंद कर लेता है, पर झुकना नहीं घास झुकती हैं, इसलिए वह अपन अस्तित्व को कायम रखती हैं उत्तम मार्दव का अर्थ यहीं है, कि जीवन में नम्रता का होना यानी अहंकार भाव न होना मार्दव धर्म यही शिक्षा देता हैं कि, हे मानव! तुझे यदि अपना वास्तविक सम्मान चाहिए, तो दूसरों का भी सम्मान करना सीखं मार्दव-धर्म विनयी बनने की ओर इंगित करता है, क्योंकि पूज्य महापुरूषों की विनय ही मोक्ष का द्वार है किन्तु ध्यान रखना, दिगम्बराचार्यों ने मात्र झुकने को ही विनय नहीं कहां विनय का तात्पर्य-मृदोर्भाव अर्थात् जीवन में मृदुता का आगमनं मृदुता का अर्थ-विनम्रता, शिष्टाचार मात्र नहीं, यह अपूर्ण समझ हैं "मृदो वो मार्दवम्" अर्थात् कठोरता का पूर्णतः विरेचन और क्रूरता का पूर्ण विराम जिसका हृदय मृदु नही, यदि उसका सिर भी झुकता है तो स्वार्थ के पीछे, शिष्टाचार के नातें कभी-कभी विनय में भी मान छुपा रहता हैं मुदुता अंदर का गुण हैं अंतरंग की झलक बाहर भी दिखती है, किन्तु जो बाहर दिख रहा है वह मृदु परिणाम ही है, ऐसा नियत नहीं हैं लोग अच्छा कहें, इस उद्देश्य को लेकर भी विनय झलक सकती हैं अंदर से अकड़पन रहे Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com

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