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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 432 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
व्यक्ति को हथकड़ी डालकर खींचा जा रहा थां मालूम हुआ कि इस व्यक्ति ने चोरी से व्यापार किये और सम्पत्ति रख ली, राज्य के विरुद्ध धन इकट्ठा किया, इसीलिये आज इसको जबरदस्ती न्यायालय में ले जाया जा रहा हैं पिताजी! मैंने यही तो नियम लिया था कि मैं परिग्रह का परिमाण कर रही हूँ बेटी! यह नियम भी श्रेष्ठ हैं अब बताओ पिताजी, मुनिराज के पास व्रत छुड़ाने ले जा रहे हो कि आशीर्वाद दिलाने चल रहे हो?
भो ज्ञानी! देखो, मुनिराज शत्रु से लग रहे थे जब तक इसे विवेक नहीं था, ज्ञान नहीं थां पिता जो बेटी को नियम छुड़ाने ले गया था, वह स्वयं भी नियम लेकर आ गयां बस यही तो संतों की महिमा होती है कि छुड़ाने वाले छूट जाते हैं छुड़ाने तो स्वयं गौतम स्वामी गये थे भगवान महावीर स्वामी के समवसरण में, परन्तु मानस्तंभ देखकर वे ही छूट गये और जो सिर में बाल थे वे भी नहीं बचा पाये, केश लुन्चन हो गये
अहो प्रज्ञाशील! बुद्धि यदि है, तो इसका उपयोग करों जो छोड़ा नहीं है आपने, उनकी भी सीमा कर लों कितने कपड़े पहनते हो? पचास मान लो, सौ जोड़ी मान लों और पेटियों में कितनी साड़ी रखी होंगी? क्यों इतने द्रव्य का उपभोग कर दूसरे का अन्तराय डाल रहे हैं अनाज कितना खाते हैं आप लोग तथा कितना घर में रखा है? भले ही कीड़े लग गये हों, पर किसी गरीब को नहीं दे सकोगें गरीब तो छोड़ो, पिता अपने पुत्र को नहीं दे पाता, पुत्र अपने पिता को नहीं दे पातां संसार की विचित्रता हैं तो सीमा में भी सीमा कर लेनां जीवन भर को नहीं छोड़ पा रहे तो कम से कम एक दिन को छोड़ दो, रात्रि को छोड़ दो, भोजन करने के बाद भोजन त्याग कर दो, सोते-सोते ही त्याग कर दों सुकरात से पूछा कि जीवन में कुशील का सेवन कितनी बार करना चाहिए ? सुकरात एक विचारक थे, जैन नहीं थे, लेकिन उनका चिन्तवन था कि 'जीवन में कभी अब्रह्म का सेवन नहीं करना चाहिए' यदि सामर्थ्य नहीं है, तो जीवन में एक बार; इतनी भी सामर्थ्य नहीं है तो वर्ष में एक बारं अब पुनः कहते हैं कि यदि व्यक्ति में इतनी भी सामर्थ्य नहीं तो महीने में एक बारं इतना भी न चले तो ऐसा करना, कफन ओढ़कर श्मशान में चले जानां ओहो! इतना भी संयम नहीं पाल सकते हो? अमृतचन्द्र स्वामी कह रहे हैं कि कम से कम रात्रिभर को छोड़ दो, दिन भर को छोड़ दों यदि फिर भी नहीं छोड़ पा रहे हो तो तुम्हारी दशा तुम जानो, अब नहीं समझा सकतें अतः सीमा के अन्दर सीमा करनां "कार्तिकेयानुप्रेक्षा" में सत्रह नियम का उल्लेख हैं श्रावकों को प्रतिदिन सत्रह नियम लेना चाहिएं मंदिरों में आजकल नियमों की पर्ची रखी होती है जो नियम निकल आये, ले लों पर उसे भी लोग घुमा फिरा के लेते हैं कहीं कठिन निकल आया, तो फिर धीरे से दूसरी उठा लेते हैं इस प्रकार से जो योगों को छोड़ देते हैं, उसके हिंसा का अभाव हो जाता हैं
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