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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 498 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
खाली थैली देखकर गुरु बोले-बेटे! यह क्या हुआ? गुरुदेव! मैंने तो देख लिया था, पर आपने हमसे कहा था कि किसी सामग्री को मत उठाना, इसीलिए मैंने नहीं उठायां गुरुदेव बोले–भैया! अपनी वस्तु तो उठा लिया करों 'जी, आगे से ऐसा ही करेंगें' जैसे ही आगे बढ़े, तभी घोड़े ने लीद कर दी और शिष्य ने तुरन्त अपनी थैली फैला दी यह देख गुरुजी बोले-बेटा! यह क्या कर रहे हो? 'गुरुजी! आपने ही तो कहा था कि अपनी सामग्री उठा लिया करो, घोड़ा तो अपना है नां भैया! ऐसी डायरियों में नोट करने की शिक्षा से तुम्हारा जीवन चलने वाला नहीं हैं विवेक की डायरी पर भी कुछ सोचनां यहाँ यह अनुभव करना है कि हमारी दृष्टि में लाभ कहाँ है? संसार का लाभ नहीं, परिणामों का लाभं एक समय में कितने बंध हो रहे हैं? भो ज्ञानी! एक पलक के झपकने में असंख्यात समय हो जाते हैं, इतना सूक्ष्म एक समय हैं अतः यह मत देखना कि वैभव कहाँ है? लाभ के लिए वैभव तो छोड़ना पड़ेगां वैभव नहीं छोड़ रहे हो, तो लाभ भी नहीं मिल रहा हैं
___भो ज्ञानी! आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी कह रहे हैं कि आपने लोभ किया, तो लाभ गयां व्यक्ति समय पर लोभ नहीं करता, असमय में लोभ करता हैं वहाँ लाभ भी गया, धन भी गया और धर्म भी गयां अब ध्यान से समझना, अतिथि–संविभाग व्रत के अतिचार चल रहे हैं देखो, आप द्रव्य भी देते हो, समय भी देते हो, परन्तु लाभ नहीं ले पाते हों एक क्षण में परिणाम इधर से उधर हुए, मालूम चला कि जितना पुण्य का संचय किया था वह सब असावधानी के कारण संक्रमित कर दियां सावधानी बहुत अनिवार्य हैं जैसे कि भवन को बनाने में सावधानी रखी जाती है, वैसे ही आत्म–स्थित भवन को स्थिर करने के लिए अनन्त गुनी सावधानी रखना पड़ती हैं अतः, मात्र एक तीर्थंकर भगवान का चारित्र पढ़ लीजिए, यानि उनके जीवन में घटित घटनायें, क्योंकि उनका चरित्र भी निर्मल है और चारित्र भी निर्मल हैं भगवान महावीर स्वामी से मिल लेना कि जब आप अकउआ की पर्याय में थे, हम आपसे तो अच्छे हैं, कम से कम प्रवचन-सभा में तो बैठे हैं सोचो, वे ही भगवान महावीर थे, इसीलिए पता नहीं यहाँ कौन भविष्य के भगवान बैठे हैं, उनका अविनय न हो जायें हम रोष में/मेंतोष में घास पर फर्श बिछाकर बैठ गयें अहो! आप भगवान के ऊपर बैठ गयें यदि द्रव्यदृष्टि है, तो फिर आपको सब परमेश्वर दिखेंगें इसीलिए महापुरुषों के चरित्र तो पढ़ते ही रहना चाहिए जब तक हम महापुरुष न बन जायें
भो ज्ञानी! हमारे आचार्यों ने कहा है कि यदि दोष हो गया हो तो अब तुम आलोचना कर लो, गर्दा कर लो, प्रतिक्रमण कर लों अभी प्रायश्चित नहीं देंगे, पहले प्रत्याख्यान तो करों 'परदातृव्यपदेशः ये पहला अतिचार हैं हम बाहर जा रहे हैं, आप हमारे यहाँ चौका लगा लेना और जितना खर्च हो चिंता नहीं करना, पर हम तो आहार नहीं दे पायेंगें अथवा दूसरे के द्रव्य को स्वयं दे देनां जैसे-कोई व्यक्ति आपके यहाँ दान के
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