Book Title: Purusharth Siddhi Upay
Author(s): Amrutchandracharya, Vishuddhsagar
Publisher: Vishuddhsagar

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Page 496
________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 496 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 प्रवृत्ति में आता है, वाणी में आता है, मन में तो आ ही चुका थां अतः दोषों में मग्न मत हो जानां जिस व्यक्ति ने दोष छिपाने की आदत डाल ली, उसके तो अनन्त भव तैयार हैं अहो! जब तक किसी ने नहीं, देखा तब तक लोक की दृष्टि में निर्दोष हो; परन्तु निजलोक की दृष्टि में निर्दोष कहाँ हो? जब भावलोक निर्दोष नहीं रहेगा, तो भवलोक निर्दोष नहीं बनेगा, क्योंकि भावलोक जिसका निर्मल है उसका भवलोक निर्दोष है और भवलोक जिसका सुधर गया तो उसके पास लोक बचा ही कहाँ? वह तो लोक से परे शुद्ध लोक में चला गयां भो ज्ञानी! विश्व के प्राणी भवलोक सुधारने की बात तो करते रहते हैं, परन्तु भावलोक सुधारने की बात नहीं करतें मात्र वीतराग-वाणी ही ऐसी है जो भवलोक सुधारने के पहले भावलोक सुधारने की बात करती हैं मनीषियो! एक क्षण का कषाय-परिणाम शाश्वत-द्रव्य की सत्ता को विकृत करा देता हैं जितना असंयम-भाव संसार में रुलाता है, उतनी ही हीन भावना संसार में रुलाती हैं भो ज्ञानी! यह बात ध्यान रखना कि किसी से दोष हो रहा तो उसे सम्बोधन देना, पर उसके दोष को उछालना मत, उस पर दया कर लेनां यहाँ अतिचार का कथन करने में बड़ा रहस्य चल रहा है, क्योंकि ग्रंथों में तात्कालिक बातें नहीं लिखी होती, ग्रंथ त्रैकालिक बातें करते हैं ये अतिचार भी मात्र पंचम काल के नहीं, सर्वकाल के हैं अट्ठाईस मूलगुण व बारह व्रत भी सर्वकाल के हैं उन व्रतों में जो दोष लगते हैं उन दोषों को छोड़ना अनिवार्य है, क्योंकि शक्ति की हीनता और परिणामों की चंचलता में जीव को दोष लगते हैं इसी तरह कुसंगति के संयोग से भी श्रेष्ठ-पुरुष हीन हो जाता हैं इसीलिए 'प्रवचनसार' में आचार्य कुंदकुंद स्वामी ने लिखा है तम्हाा समं गुणादो समणो समणं गुणेहिं वा अहियं अधिवसदु तम्हि णिच्चं इच्छदि जदि दुक्खपरिमोक्खं 270 'हे यति! यदि दुःखों से मुक्त होना चाहते हो तो श्रेष्ठ यही है कि अधिक गुण वालों के साथ रहना चाहिएं यदि अधिक गुणी प्राप्त नहीं हो पा रहे तो समान गुण वालों के साथ रहो, पर हीनाचरण वालों के साथ मत रहनां अन्यथा ध्यान रखो कि संगति का बड़ा असर पड़ता हैं एक ब्राह्मण माँ ने दो पुत्रों को जन्म दियां एक पुत्र का चाण्डाल के यहाँ पालन-पोषण किया गयां दूसरे पुत्र का ब्राह्मण कुल में ही पालन कराया Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com

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