________________
पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 494 of 583 ISBN # 81-7628-131-
3 v -2010:002 "अतिचारों से बचो" परदातृव्यपदेशः सचित्तनिक्षेपतत्पिधाने चं कालस्यातिक्रमणं मात्सर्यं चेत्यतिथिदानें 194
अन्वयार्थ : परदातृव्यपदेशः = किसी दूसरे के हाथों आहार दिलवानां सचित्तनिक्षेपतत्पिधाने च = सचित्त निक्षेप और सचित्तपिधान, ( आहार की वस्तुओं को हरे पत्तों में रखना ) कालस्यातिक्रमणं = काल का अतिक्रम, (भोजन काल का उल्लंघन करना ) च मात्सर्य इति = और मात्सर्य,(आदरभाव न होना) इस प्रकार, अतिथिदाने = अतिथि संविभाग व्रत के पांच अतिचार होते हैं
जीवितमरणाशंसे सुहृदनुरागः सुखानुबन्धश्च सनिदानः पंचैते भवन्ति सल्लेखनाकाले 195
अन्वयार्थ : जीवितमरणाशंसे = जीवितशंसा मरणशंसा, (जीवन व मरण की आशंसा) सुहृदनुरागः सुखानुबन्धः = सुहृदानुराग,(अपनों के प्रति अनुराग) सुखानुबन्ध च सनिदानः एते पंच = और निदान सहित, ये पाँच अतिचारं सल्लेखनाकाले भवन्ति = समाधिमरण के समय में होते हैं
इत्येतानतिचारानपरानपि संप्रतय॑ परिवयं
सम्यक्त्वव्रतशीलैरमलैः पुरुषार्थसिद्धिमेत्यचिरात् 196 अन्वयार्थ : इति एतान् = इस प्रकार गृहस्थ इन पूर्व में कहे हुएं अतिचारान् = अतिचारों को और अपरान् = दूसरों को अर्थात् अन्य दूषणों के लगाने वाले अतिक्रम व्यतिक्रमादिकों की अपि संप्रतयं परिवर्ण्य = भी विचारकरके, छोड़करं अमलैः सम्यक्त्वव्रतशीलैः = निर्मल सम्यक्त्व, व्रत और शीलों द्वारा अचिरात् = थोड़े ही समय में पुरुषार्थ सिद्धिम् एति = आत्मा के प्रयोजन की सिद्धि को प्राप्त होता हैं
Visit us at http://www.vishuddhasagar.com
Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com