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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
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पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 477 of 583
ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
जायेंगें ध्यान रखना, वे भी अपने भाग्य का खा रहे हैं इसीलिए ध्यान रखो कि छेदन, बंधन, मारण अतिभार लादना,
घर में भैंस बैल या नौकर को समय पर दाना-पानी न देना यह सब अहिंसाव्रत के अतिचार हैं हम मंदिर से भगवान की पूजा करके आ रहे हैं. इतना काम और कर लेनां फिर 12 बजे भोजन कर लेना, पानी पी लेना अब बताओ, नौकर को समय पर पानी भी नहीं पीने दे रहे हों सोचो, आपने तो अन्न-पान का निरोध कर दियां यह अहिंसा व्रत के अतिचार हैं जो जिनवाणी में नहीं लिखा, जिनागम में नहीं कहा अथवा जो मोक्षमार्ग से विपरीत है, ऐसी बातों का उपदेश कर देना मिथ्या उपदेश हैं कभी कोई जिनवाणी के विरुद्ध / विपरीत बोले तो आप तो हाथ जोड़कर कह देना कि आगम की विधि ऐसी है, हम तो ऐसा करेंगें हम जिनवाणी के साथ छल नहीं कर पायेंगें अप्रतिष्ठित या प्रतिष्ठित प्रतिमा घर में ऐसे वैसे नहीं रखनां प्रतिष्ठित या को रखने के लिए आगम में गृह चैत्यालय की व्यवस्था है, ऐसा नहीं कि वहीं घर-गृहस्थी है, उसी में आप प्रतिमा रख लॅ आप अलग से गृह चैत्यालय बनवायें गृह - चैत्यालय में आप प्रतिमा को विराजमान करें ऐसा आगम में कथन है परन्तु ऐसा नहीं कि उसी में आप सो रहे हों, उसी में आप भोजन कर रहे हों और एक अलमारी में भगवान विराजमान करें आगम की विधि का ध्यान रखनां मिथ्योपदेश नहीं देना और जब पंचकल्याणक तय हो जायें तो ही श्रीजी को लेकर आनां छह महीने से ज्यादा अप्रतिष्ठित प्रतिमा मंदिर अथवा समाज में कहीं भी रखी तो उसका उल्टा परिणाम प्रारम्भ हो जाता हैं
किसी का रहस्य आप समझ गये, उसको कभी प्रकट नहीं कर देनां स्त्री-पुरुष आदि की गुप्त चेष्टा आपको मालूम है, परन्तु कभी किसी की बात को प्रकट नहीं करना यदि करते हो तो सत्य व्रत में दोष हैं कूटलेख क्रिया- झूठे आलेख लिख देना, झूठी गवाही देना, झूठी बात करना, यह भी सत्यव्रत में दोष हैं कोई आपके यहाँ धरोहर (पचास हजार) रखकर भूल गया और वह पच्चीस हजार माँगता है तो आपने धीरे से निकालकर दे दिया, सोचा कि कौन हमने चोरी की? पर वह दोष ही हैं गुप्त - चेष्टा को प्रकट कर देना, रहस्य प्रकट कर देना, धरोहरों को हड़प लेना, गुप्त क्रिया को प्रकट कर देना और ऐसी बातें करना जिससे लोग संशय में पड़ जायें ये सभी दोष हैं एक बात का ध्यान रखना, जो कहना हो उसे आप स्पष्ट कहें पर मर्यादित कहें, ऐसा स्पष्ट भी मत कहना कि चार व्यक्तियों में परस्पर में झगड़ा हो जायें किसी के प्राण चले जायें, ऐसे स्पष्टीकरण की कोई आवश्यकता नहीं हैं वहाँ आपको मौन रहना चाहिए जिस स्पष्टीकरण से किसी में विसंवाद हो, ऐसा स्पष्टीकरण भी असत्य ही हैं ऐसा सत्य भी श्रावक को नहीं बोलना चाहिए जिससे किसी का वध हों इस प्रकार ये पाँच अतिचार सत्य अणुव्रत के हैं
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