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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज
Page 450 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 ध्यान रखना-कोई छील दे बसूले से तो भी उसमें शांत हो जाना, लेकिन अपने धर्म को मत छील लेनां समाधि सम्यकदृष्टि की होती हैं जब देख लिया कि जीवन बचने वाला नहीं है, उस समय सल्लेखना की जाती हैं "दुर्भिक्षे' घोर अकाल पड़ जाएं जहाँ श्रावकों को खाने को ही न हो, वहाँ संयमी को कैसे भोजन मिलेगा ? उस समय वह आत्मधर्म की रक्षा के लिए सल्लेखना धारण कर लेते हैं जरा यानि बुढ़ापां जब आँखों से दिखना बंद हो गया, कानों से सुनना बंद हो गया, समितियों का पालन होते नहीं दिखता; उस समय, मनीषियो! सल्लेखना धारण कर लेना चाहिएं रोग हो जाए, जिसका प्रतिकार नहीं किया जा सकतां अज्ञानी रोएगा परन्तु ज्ञानी कहेगा, "अहो! मेरा सौभाग्य है, जो मुझे पन्द्रह दिन पहले से मालूम चल गयां चलो, मैं अपनी साधना करता हूँ' भो ज्ञानी! सल्लेखना पर पहला ग्रंथ है शिवकोटि महाराज का 'भगवती आराधना' ओहो! सल्लेखना शुरू नहीं की, स्थान बता रहे हैं कि कहाँ सल्लेखना हो सकती हैं 'समाधि भक्ति' में आचार्य भगवन् पूज्यपाद स्वामी लिख रहे हैं
गुरुमूले यतिनिचिते, चैत्य सिद्धांत वार्धिसद्घोषं
मम भवतु जन्मजन्मनि, सन्यसन समन्वितं मरणम् (स.त.)
प्रभु! मेरा मरण हो तो कहाँ हो? 'गुरु मूले', गुरुदेव के चरणों में हो, जहाँ पर यतियों का समूह हों एक निर्दोष सल्लेखना के लिए अड़तालीस मुनि चाहिएं अहो श्रावको! रागी तो पानी पिला डालेंगे, जिनवाणी नहीं पिलाएँगें गुरु तुम्हें पानी नहीं, जिनवाणी पिलाएँगें आचार्य ब्रह्मदेव स्वामी ने ‘परमात्म प्रकाश' की टीका में लिखा है कि अंतिम समय में निश्चित ही ऐसी मति हो जाएगी और जैसी मति है, निश्चित वैसी ही गति हो जाएगी जैसी मति है, वैसी गति निश्चित हैं इसलिए मति को अभी से सुधार लो, श्री और श्रीमती से हट जाओं एक बेटे को औषधि का पान कराना हो तो माँ उसकी नाक पकड़ लेती हैं तुम्हारे मुख को दबा सकती है, लेकिन तुम्हें गुटका नहीं सकतीं गुटकना तो तुम्हें ही पड़ेगां इसलिए समंतभद्र स्वामी कह रहे हैं कि "धर्मायतनं विमोचनं" धर्म के लिए शरीर छोड़ना, इसका नाम सल्लेखना हैं वह सल्लेखना श्रावक भी करता है, साधु भी करते हैं कहा भी है
कालक्षेपो न कर्त्तव्याः आयुक्षीणे दिने-दिने यमस्य करुणा नास्ति,धर्मस्य त्वरितागतिं
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