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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
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पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 347 of 583
ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
आभूषण है परन्तु कुशील का वैभव कोरा मल हैं इस मल का लोग मुझे मत दो मेरे स्वामी आने वाले हैं, तुम्हारे मल और बल का पता नहीं चलेगां" जिसके शील की तान जुड़ी है, उसी की आत्मा का संगीत निर्मल होता हैं नीतिकारों ने लिखा है कि छल-कपट से कमाया गया धन दस वर्ष तक चल सकता है, ग्यारहवें वर्ष में मूल के साथ चला जाएगां खजुराहो के मंदिर निर्माता सेठ पाहिल ने प्रशस्ति में लिखा है मैंने इस जिनालय के लिए आठ बगीचे आठ बावड़ियाँ एवं भूमि दान में लगायी हैं पता नहीं, इससे इसकी पूजा की व्यवस्था होगी कि नहीं आगे लिखा है कि जब मेरा वंश भी नहीं बचेगा और मेरे द्वारा दिया गया दान भी नहीं बचेगा, तो मैं उस व्यक्ति के दास का दास हूँ जो इस जिनालय की रक्षा करेगा क्योंकि सेठ पाहिल को मालूम था कि जो वैभव मुझे मिला है, या तो मैं उसके पहले चला जाऊँगा या फिर मेरे पहले यह वैभव चला जाएगा इसका नाम है पुण्यानुबंधी पुण्यं पुण्यात्मा जीव का द्रव्य पुण्य क्षेत्र में ही लगता है और पापी जीव का द्रव्य धर्म-क्षेत्र में नहीं लग पाता, और यदि लगेगा भी तो धर्मशाला स्थित संडास में प्रशस्ती लिखी मिल जाएगीं कुछ का नाम पंखे पर लिखा मिल जाएगा, क्योंकि उनके पाप का द्रव्य था तो पंखे में लगा हैं मनीषियो! जब नाम लिखाते हो तो पहले 'श्री' लिखाते हों यह वह 'श्री' है, जो तीर्थंकर के अभिषेक के समय भद्रपीठ पर लिखी जाती हैं उस श्री पर तुम्हारे निमित्त से पैर रखा जा रहा हैं अहो ! एक-एक वर्ण मंत्र हैं जब कोई मंत्र प्रारम्भ होता है तो श्री से होता हैं ज्ञानी आत्माओ में निषेध नहीं कर रहा हूँ कि आप नाम न लिखवाएँ यदि नाम लिखवाने का शौक ही है तो दीवार पर लिखवा दो, लेकिन फर्शो पर "श्री" नाम लिखाकर नाम को बदनाम मत कराओं आचार्य अमृतचंद स्वामी ने सूत्र दिया था कि जैसी राग की तीव्रता होगी, वैसी परिग्रह की लिप्सा होगी और जैसी परिग्रह की लिप्सा होगी, वैसे ही कर्म का तीव्र बंध होगां दृष्टांत दिया था कि एक ओर बिल्ली का बच्चा, एक ओर हिरण का बच्चां सोचो, हिरण का बच्चा तृण को खाकर, पानी पीकर, शांत होकर, विचरण करता हैं जबकि बिल्ली का बच्चा चौबीस घंटा विचरण करता है कि कहीं चूहा दिख जाएं बस, ऐसी ही रागी की दशा होती हैं
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मनीषियो दूसरे पर चाहे करुणा मत करो, लेकिन निज पर तो करुणा करों वह माँ कैसी है जो अपने बेटे को ब्रेड खिला रही हो, जिसमें जैविक द्रव्य पड़े हों और माँ कह रही है - बेटा! लों बच्चे को अभक्ष्य - द्रव्य दे रही हो, कैसी जननी हो ? इसलिए ध्यान रखना, जिसमें प्रीति ज्यादा होती है, कीड़े वहीं ज्यादा होते हैं, क्योंकि अधिक मीठे में कीड़े ज्यादा होते हैं
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भो ज्ञानी! संसार में जिओ, लेकिन सबके साथ हिल-मिलकर रहनां सिद्धांत कहता है कि प्रत्येक द्रव्य स्वतंत्र है और जिसे तुम अपना कह रहे हो, वह भी तो अत्यंत भिन्न हैं जीवन में यदि आप किसी का दुलार/प्रेम देखना चाहते हो तो जीवन में मधुरता लाओ, सब आपके होंगें यदि स्वयं के अंदर माधुर्य है अथवा जिसके अंतरंग में गुणों का माधुर्य है, उसके पास चीटियाँ-रूपी जन- परिजन अपने आप चिपकेंगें यदि
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