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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
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पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 361 of 583
ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
भो ज्ञानी! प्राचीन पद्धति क्या थी? सुबह की पूजा-पाठ करके साधुओं की आहारचर्या कराके श्रावक जाता था अर्थोपार्जन के लिए और शाम को अपनी अन्थऊ की बेला में घर आ जाता थां फिर अपनी सामायिक करता भगवान् की वंदना करता वचनिका सुनता थां वर्तमान में सुबह के अखबार में सुबह की सामायिक हो गई और संध्या के अखबार में संध्या की सामायिक हो गई और टेलीविजन के सामने वचनिका चलती हैं बताओ क्या जीवन है? भोली आत्माओ ! ऐसी मायाचारी करके तुम कहाँ जा रहे हो? मनीषियों! देवदर्शन, पानी छानकर पीना और रात्रिभोजन नहीं करना यह जैनी के तीन चिह्न आस्था के प्रतीक हैं पुरातत्व एवं साहित्य ये संस्कृति के प्राण हैं, जो तुम्हारी पहचान हैं भो प्रज्ञात्माओ ! आचार्य भगवान कह रहे हैं कि रात्रि में भोजन करने से नियम से हिंसा होती हैं विवाह में रात्रियों में भट्टियाँ चढ़ती हैं और दिन में परोसा जाता हैं अहो ! रात्रि में बना, दिन में खाया, वह भी हिंसक है और दिन का बना रात्रि में खाया, वह भी हिंसक हैं इसीलिए जिसकी हिंसा में वृत्ति है, उसे छोड़ देना चाहिए
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