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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
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पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 395 of 583
ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
नहीं बैठा, इसका पुण्य बैठा हैं सामायिक कह रही है कि आर्त्तरौद्र परिणाम जब तक नहीं छूटे, तब तक सामायिक नहीं इसलिए निर्दोष-स्थान की चर्चा की गई हैं यह द्रव्य - सामायिक हैं
(2) क्षेत्र सामायिक:- मुझे तो यही मंदिर अच्छा लगता हैं मुझे तो यही तीर्थ अच्छा लगता हैं वह तो बहुत बेकार स्थान हैं क्षेत्रगत इष्ट / अनिष्ट का होना यह क्षेत्र - सामायिक का अभाव हैं किसी भी क्षेत्र में इष्ट या अनिष्ट का भाव नहीं लाना, इसका नाम क्षेत्र- सामायिक हैं जहाँ भेद आ रहे हैं, वहाँ सामायिक नहीं (3) काल सामायिकः- मुझे तो शीत-काल अच्छा लगता हैं बरसात में गलियों में कीचड़ हो जाता है, सो अच्छा नहीं लगतां एक व्यक्ति गर्मी में तड़प रहा है भगवान! सर्दी का मौसम अच्छा रहता है, कम से कम प्यास तो नहीं सतातीं दूसरा कहता है कि वो गर्मी अच्छी रहती है, कहीं भी बैठ जाओं भो ज्ञानी ! मौसम ने अपना मौसम नहीं छोड़ा, पर तूने अपना मौसम छोड़ दियां यह काल - सामायिक भंग हो गयीं समय को देखकर विकल्प नहीं लाना कि ऐसा समय नहीं, ऐसा समय होना चाहिएं सामायिक करनेवाले का तो हर समय एक-सा होता हैं बरसात में पीतल के बर्तन काले पड़ जाते हैं यानि पुद्गल पर काल का प्रभाव पड़ा, पर मुमुक्षु के भाव पर काल का प्रभाव न पड़े, इसका नाम काल - सामायिक हैं (4) भाव सामायिक:- सबसे कठिन सामायिक भाव - सामायिक हैं यदि भाव - सामायिक हो जाये, तो शेष सामायिक अपने आप हो जाएं परिणामों की विकृति का अभाव हो जाना, यह भाव सामायिक है और कभी-कभी भव की भी सामायिक कर लेता है कि भगवान्! मैं नरक में न जाऊँ अरे! तेरे कहने से नहीं, लेकिन तूने जो किया है, उस परिणति से तू कैसे बच जाएगा? (5) नाम सामायिकः- मेरा नाम अच्छा होना चाहिएं किसी के अच्छे नाम को बुरा कहना, दूसरे की अवहेलना करना, यह नाम - सामायिक का अभाव है ( 6 ) स्थापना सामायिक:- मिथ्यात्व की स्थापना करना, मिथ्या देवी-देवताओं की आराधना करना, यह स्थापना - सामायिक का अभाव है, और सच्चे देव - शास्त्र - गुरु की स्थापना करना, यह स्थापना - सामायिक हैं आयतन की स्थापना करना, अनायतन की स्थापना नहीं करना - यह स्थापना - सामायिक हैं रागद्वेष को छोड़कर बैठना और साम्य-भाव को लेकर बैठनां ध्यान रखना, यदि कोई पड़ोसी आपको परेशान कर रहा हो तो भी आप समता के साथ रहा करो, कम से कम समता तो बनी रहेगीं यदि आपके यहाँ पुत्रवधु आपके मन की नहीं आयी, तो कुछ दिन आपको भी अभ्यास बनाना पड़ेगा साम्य-भाव कां
भो ज्ञानी! कुछ लोग ऐसा करते है कि यहाँ नहीं बनी तो वहाँ चले गए और वहाँ नहीं बनी, तो कहीं और चले गएं ठीक है, आप स्थान बदलो, लेकिन जब तक भाव नहीं बदले, कर्म नहीं बदले, तब तक स्थान बदलने से कुछ नहीं होगां आप आश्चर्य करेंगे, एक सज्जन हैं सम्मेद शिखर में उनके परिवार के लोगों ने उनको छोड़ दिया है, करोड़पति हैं महिने में आते हैं उनके भैया वगैरह और होटल वगैरह का जितना खर्चा होता है वह चुकाकर चले जाते हैं कहकर रखा है कि जिसकी दुकान पर भी जाएँ जो भी माँगे वह दे देना,
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