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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 427 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
"करो सीमा में भी सीमा"
अविरुद्धा अपि भोगाः निजशक्तिमपेक्ष्य धीमता त्याज्या: अत्याज्येष्वपि सीमा कार्यैकदिवानिशोपभोग्यतया 164
अन्वयार्थ : धीमता निजशक्तिम् = बुद्धिमान पुरुष के लिये अपनी शक्ति को अपेक्ष्य = देखकरं अविरुद्धाः अविरुद्धं भोगा अपि = भोग भी त्याज्याः = त्याग देने योग्य हैं और यदि अत्याज्येषु = उचित भोगोपभोगों का त्याग न हो सके तो उनमें अपि एकदिवानिशोपभोग्यतया = भी एक दिनरात की उपभोग्यता से सीमा कार्या = मर्यादा करनी चाहिये
पुनरपि पूर्वकृतायां समीक्ष्य तात्कालिकी निजां शक्तिम्
सीमन्यन्तरसीमा प्रतिदिवसं भवति कर्तव्या 165
अन्वयार्थ : पूर्वकृतायां सीमनि पुनः अपि = प्रथम की हुई सीमा में फिर भी तात्कालिकी =उसी समय की अर्थात् विद्यमान समय की निजां शक्तिम् समीक्ष्य = अपनी शक्ति को विचार करके प्रतिदिवसं = प्रतिदिनं अन्तरसीमा = अन्तरसीमा अर्थात् सीमा में भी थोड़ी सीमा कर्तव्या भवति = करने योग्य हैं
इति यः परिमितभोगैः सन्तुष्टस्त्यजति बहुतरान् भोगान् बहुतरहिंसाविरहात्तस्याऽहिंसा विशिष्टा स्यात् 166
अन्वयार्थ : यः इति परिमितभोगैः = जो गृहस्थ, इस प्रकार मर्यादारूप भोगों में सन्तुष्ट: बहुतरान् = सन्तुष्ट होकर अधिकतरं भोगान् त्यजति = भोगों को छोड़ देता हैं तस्य बहुतरहिंसाविरहात् = उसका बहुत हिंसा के त्याग सें विशिष्टा अहिंसा स्यात् = उत्तम अहिंसावत होता हैं
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