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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 412 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
"सप्तशील"
उक्तेन ततो विधिना नीत्वा दिवसं द्वितीयरात्रिं चं अतिवाहयेत्प्रयत्नादधं च तृतीयदिवसस्य 156
अन्वयार्थः ततः = उसके बादं उक्तेन विधिना = पूर्वोक्त विधि से दिवसं = उपवास का दिनं च द्वितीयरात्रिं = और दूसरी रात कों नीत्वा च = प्राप्त होकर फिरं तृतीय दिवसस्य =तीसरे दिन कां अर्ध = आधा भाग भी प्रयत्नात् = अतिशय यत्नाचारपूर्वकं अतिवाहयेत् = व्यतीत करें
इति यः षोडशयामान् गमयति परिमुक्तसकलसावद्यः तस्य तदानीं नियतं पूर्णमहिंसाव्रतं भवति 157
अन्वयार्थ:यः इति = जो जीव इस प्रकारं परिमुक्तसकलसावद्यः = सम्पूर्ण पाप-क्रियाओं से रहित होकरं षोडशयामान् = सोलह प्रहरं गमयति = व्यतीत करता हैं तस्य = उसे तदानीं = उस समयं नियतं = निश्चयपूर्वकं पूर्ण = सम्पूर्ण अहिंसाव्रतं भवति = अहिंसाव्रत होता हैं
भो मनीषियो! आचार्य अमृतचंद्र स्वामी ने अलौकिक सूत्र प्रदान किया है कि हमारे भावों की निर्मलता, परिणामों की विशुद्धि कैसे प्रादुर्भूत हो? अहो ज्ञानियो! तुमने जीवन में आज तक अनन्त पर्यायों में परिणामों को ही कलुषित रखा हैं अब इस कलिकाल में भी अपने आप को नहीं सुधार पाये, तो आगे इससे भी काला काल आने वाला है, उसका नाम छठवाँ काल हैं जहाँ एक मनुष्य दूसरे मनुष्य को कच्चा खायेगा, अग्नि नहीं
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