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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 362 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v-2010:002
'छोड़ो रात्रि भोज" यद्येवं तर्हि दिवा कर्तव्यो भोजनस्य परिहार भोक्तव्यं तु निशायां नेत्थं नित्यं भवति हिंसां 131
अन्वयार्थ : यदि एवं = यदि ऐसा है ( अर्थात् सदाकाल भोजन करने में हिंसा है ) तर्हि दिवा भोजनस्य = तो दिन के भोजन कां परिहारः कर्त्तव्यः = त्याग करना चाहिये तु निशायां = और रात्रि में भोक्तव्यं = भोजन करना चाहिये इत्थं हिंसा = इस प्रकार से हिंसां नित्यं न भवति = सदाकाल नहीं होगी
नैवं वासरभुक्तेर्भवति हि रागोऽधिको रजनिभुक्तौं अन्नकवलस्य भुक्तेर्भुक्ताविव मांसकवलस्यं 132
आचार्यश्री का उत्तर
अन्वयार्थ : एवं न = ऐसा नहीं है क्योंकि अन्नकवलस्य = अन्न के ग्रास के (कौर के) भुक्तेः = भोजन से मांसकवलस्य = ग्रास के ग्रास कें भुक्तौ इव = भोजन में जैसे राग अधिक होता है, वैसे ही वासरमुक्तेः = दिन के भोजन सें रजनिभुक्तौः = रात्रि भोजन में हि रागोधिकः भवति = निश्चय कर अधिक राग होता हैं
तीर्थेश महावीर स्वामी की पावन-पीयष देशना हम आचार्य भगवान अमतचन्द्र स्वामी के माध्यम से सुन रहे हैं अपने अन्तस्थ में पहुँचकर आगम के गहनतम् सूत्रों को आचार्य महाराज ने हम सभी के लिए प्रदान किया है कि, ज्ञान का श्रद्धान और ज्ञान का आचरण दोनों महत्वशाली हैं क्योंकि श्रद्धा के अभाव में ग्यारह अंगों का भी ज्ञान हो जाता है, लेकिन वह ज्ञान अंत में संसार की ही यात्रा कराता हैं श्रद्धा के अभाव में चारित्र भी ग्रेवेयक की वंदना करा देता है, जबकि श्रद्धा के सद्भाव में किया गया ज्ञान और आचरण सुव्रत को प्रदान कराता हैं श्रद्धा यदि है, तो दया स्वतः ही ग्राह्य होती हैं श्रद्धा नहीं होती, तो दया नहीं होती, वहाँ
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