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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 365 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
कैसे माता-पिता ? वह कैसी सन्तान, जिस पर तुम्हारा अधिकार न हो? यह नीति है कि संतान और शिष्यों को अति नजदीक नहीं रखना चाहिए तथा नारी को देहरी के बाहर नहीं जाने देना चाहिएं इन तीन की मर्यादा आपने भंग की, समझ लो तुम्हारा घर सत्यानाश हुआं जैनदर्शन में अहिंसाधर्म प्रधान हैं कान्वेंट भेजकर इंग्लिश बोलना सिखा दिया, लेकिन “णमोकारमंत्र" नहीं सिखा पाये तो श्रमणसंस्कृति को आपने क्या दिया ? आज पाठशाला और धर्म की पढ़ाई की चर्चा करो तो, महाराजश्री! बच्चों को फुरसत नहीं हैं चिंता नहीं करो, अंत में आपको गालियाँ सुनने मिलेंगी इसीलिए ध्यान रखना, यह भी करुणा है कि स्वयं की संतान को संतान मत मानो, उन्हें भी जीव मान लो; क्योंकि पुत्र मानकर कहोगे तो राग झलकता हैं उसे भी तुम एक सत्य मानो, उसे भी तुम जीव मानों यह श्रमणसंस्कृति निवृत्ति व प्रवृत्ति उभय-मार्गी हैं
अहो! उस घर की क्या दशा होगी, जहाँ दादाजी टेलीविजन के सामने रात्रि में पिक्चर देख रहे हों, वहीं बच्चों के साथ थाली में भोजन कर रहे हों? अब वे दादाजी कहें-बेटा! अब पर्युषण पर्व आने वाले हैं अतः रात्रिभोजन नहीं करना परन्तु तुम्हारी कोई नहीं सुन रहां आप स्वयं बताओ, सिर पर सफेदी आ चुकी है, अब तनिक तो सोचों बहुत देख लिया, बहुत कुछ कर लियां यदि अभी भी न समझे तो मैं समझता हूँ कि अब भगवान महावीरस्वामी तो समझाने आने वाले नहीं हैं बालों को सफेद की जगह काले करा सकते हो, बत्तीसी लगवा सकते हो, पर जब आयुकर्म क्षीण हो जाये उसको और बढ़ा लेना, क्योंकि आजकल कोई बूढ़ा होना ही नहीं चाहतां हमारे आगम में एक प्रकार के वृद्ध की चर्चा नहीं है वरन् उम्रवृद्ध, ज्ञानवृद्ध, तपवृद्ध आदि की चर्चा हैं 'ज्ञानार्णव' ग्रंथ में आचार्य शुभचन्द्र स्वामी ने अलग से वृद्धसेवा अधिकार' लिखा है और साधुओं से कहा है कि वृद्धों की सेवा करना, क्योंकि वृद्धों की सेवा करने से शास्त्र-ज्ञान नहीं, अनुभव का ज्ञान मिलता हैं अहो! वृद्ध संगति से ब्रह्मचर्य पलता है और वृद्धों के साथ रहने से संयम में निर्दोषता रहती है, क्योंकि वृद्ध के शरीर अब वासनाओं से शिथिल हो चुके हैं, इनके शरीर को देखकर वासनाएँ नहीं सतायेंगी युवाओं के शरीर को देखोगे तो वासनाएँ/कामनायें सतायेंगी इसीलिए उन्होंने कहा कि वृद्धों के साथ रहों वृद्धसेवा गुणों की वृद्धि के लिए करना, लालसा कि वृद्धि के लिए नहीं ध्यान रखना, दादाजी की बात मान लेना, उनका काम धीरे से कर देना और कहना कि अब हम आपका काम करते हैं, लेकिन आप अपना काम करो, जाप करो, 'णमोकार मंत्र' करो, और कोई अन्य काम नहीं तुम्हारां विश्वास रखना, तुम्हारे छोटे-छोटे नाती तुम्हें देखेंगे तो आँखें बंद करके माला करेंगें मैने आँखों से देखा है, क्योंकि जैसा दृश्य सामने होता है, वैसा दृश्यमान सामने होता हैं
भो ज्ञानी! जीवन में ध्यान रखना, यदि संस्कार निर्मल हैं, तो संतान निर्मल होगी और यदि निर्मल होने पर भी ठीक नहीं है, तो भी संक्लेषता नहीं करना; क्योंकि कर्म-सिद्धांत हैं फिर यह कहना कि हमारे पूर्वभव का शत्रु है, क्योंकि हमने सब कुछ अच्छा कियां राजा श्रेणिक ने तो तीर्थकर की देशना सुनी, पर बेटा
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