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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 346 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
हैं आपने मेरा हरण क्यों किया था ? आज मेरा पति पागल-सा आपकी नगरी में घूम रहा हैं कुछ भी हो, आपके वैभव के कारण कोई कुछ कह नहीं पाए, इसका अर्थ यह नहीं है कि प्राणीमात्र असत्य को स्वीकार कर रहा हैं
भो ज्ञानी! अधिकार क्षेत्र और धर्म क्षेत्र भिन्न-भिन्न हैं अधिकार क्षेत्र के पीछे धर्म का बलिदान न कभी हुआ है और न कभी हो पाएगां लंकेश के पास भी अधिकार तो था, पर धन्य हो भाई विभीषण वैभव छोड़ने के लिए तैयार हो गया, लेकिन कुशीलसेवी का सहयोग करना स्वीकार नहीं कियां
मनीषियो! जिनशासन कहता है कि पर-पदार्थ पर दृष्टि का पहुँचना ही व्यभिचार हैं रावण ने एक परनारी को घर में रखा, तो आपकी दृष्टि रावण पर पहुँच जाती हैं भो ज्ञानी! बड़े आश्चर्य की बात है कि कुशील को हीनदृष्टि से देखते हैं तथा पाँचवें पाप को हम प्रेम से गले लगाते हैं जबकि हमारे आचार्य अकलंकदेव स्वामी ने कथन किया कि कुशील तो परिग्रह में ही शामिल हैं इसलिए बहिरंग परिग्रह में द्विपद (अर्थात् स्त्री- पुरुष आदि) परिग्रह हैं अतः आचार्य कुंदकुंददेव की भाषा में जितने अशुभकर्म हैं, वे सब कुशील हैं यहाँ अमृतचंद्र स्वामी कह रहे हैं कि 'श्री' की आराधना में मत लग जाना, नि:-श्रेयस की आराधना की दृष्टि से आप लगना; क्योंकि परिग्रह भी पाप हैं परिग्रह से धर्म नहीं, परिणति से धर्म है और धन को देखकर धर्म की जय-जयकार करने के जो तुम्हारे संस्कार पड़े है कि मैं धन से सब कुछ कर लूँगा, ऐसे भाव यदि तुम्हारे हैं, तो ध्यान रखना, धन से तुम भवन खड़े कर सकते हो, लेकिन धन से भगवान् की आराधना नहीं कर सकतें गोमटेश बाहुबली की स्थापना तो हो गयी, लेकिन मंत्री चामुण्डराय को अंहकार आ गया कि विश्व में इतनी विशालकाय प्रतिमा स्थापित करनेवाला यदि कोई है तो मैं हूँ; ऐसे भाव आ गये और जैसे ही कलश लेकर भगवान् के अभिषेक के लिए वह पहुँचता है, वह प्रभु के चरणों का प्रक्षालन नहीं कर पाया, क्योंकि चरणों में अहंकारी आता ही कब है ? अहंकारी तो सिर पर ही बैठता है और श्रद्धा से ओत-प्रोत बुढ़िया जैसे- तैसे पहुँच गईं उसने जैसे ही नारियल की नरेटी से धार छोड़ी, तो प्रभु के चरण ही क्या, पूरे के पूरे अंग-प्रत्यंग का अभिषेक हो गयां यह सब निर्मल परिणति थीं जहाँ घट के घट, कलश के कलश प्रभु के चरण को नहीं धो पाए परन्तु नारियल की नरेटी का दुग्ध प्रभु के सर्वांग पर छा गयां सिर पर मुकुट बांध देना सरल है, सिर पर सेहरा लगा देना सरल है, लेकिन चरणों को धो पाना बहुत ही कठिन हैं चरण उसी को स्पर्श करने को मिलते हैं, जिसका आचरण निर्मल होता हैं जिसका आचरण निर्मल नहीं होता, उसको प्रभु के चरणों का स्पर्श करने को नहीं मिलतां चामुण्डराय ने अपना वैभव तो दिखा दिया, पर वैभव ही उसका नीचे आ गयां जिस समय रावण सोने की लंका का वैभव महासती सीता को बता रहा था कि हे जानकी! हे सीते! आप चिंता नहीं करना, संपूर्ण स्वर्ण-लंका की आप सम्राज्ञी हो, आप मुझे स्वीकार करों उसी समय सीता ने रावण से कहा- "मैं एक नारी हूँ जिनवाणी ( पद्मपुराण) में लिखा है- शीलवान् की दरिद्रता भी
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