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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 344 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
भो ज्ञानी! कहीं लोभ में आकर ऐसी प्रतिष्ठादि भी मत करा लेनां आजकल तो प्रतिष्ठाचार्य महोदय भी कह देते हैं "इतना दान कर दो तो प्रतिष्ठा होगी अन्यथा ले जाओ, प्रतिमा में दोष हैं" यदि प्रतिष्ठायोग्य नहीं है तो दान देकर योग्य हो जायेगी और दान नहीं दिया तो अयोग्य है जबकि प्रतिमा वही हैं इसलिये कषाय की परिणति विचित्र होती हैं उसके लिये आचार्य महाराज ने कहा है कि तुम बिलाव मत बनों बिलाव एवं हिरण के बच्चे में मूर्छा की विशेषता हैं हिरण तो हरे तृण खाता है, उसकी मूर्छा मंद होती हैं जबकि बिलाव चूहे को खाता है, उसकी मूर्छा तीव्र होती हैं यही कार्य-कारण विशेषता हैं
श्री भगवान आदिनाथ अतिशय छेत्र, रानीला, (हरियाणा)
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