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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 326 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
जिनकल्पी मुनिराज की साधना हैं स्थविरकल्पी मुनिराज पंचमकाल के मुनिराज होते हैं यदि जीव आता है तो पिच्छी से हटा सकते हैं प्रत्येक तीर्थकरकेवली जिनकल्पी ही होते हैं यदि वर्तमान के मुनि के पैर में काँटा चुभ जाए, तुम निकाल लेना, निकलवा लेनां क्यों ? तुम्हारा बज्रवृषभनाराच संहनन नहीं हैं तुम्हारा पैर सड़ जाएगा, और पैर सड़ेगा तो साधना में सड़न आयेगी इसलिए तुम संभल के चलनां उतना संहनन नहीं तुमको नाना उपचार कराना पड़ेगा तो उसमें ज्यादा विराधना होगी इसलिए निकाल लो, जिनवाणी की आज्ञा हैं आज्ञाभंग दोष नहीं हैं जिस काल में जैसी साधना संभव हो वैसी करना, पर विराधना मत करना 'मूर्छा ही परिग्रह है; यदि आपने ऐसा मान लिया तो निश्चय ही बहिरंग परिग्रह कुछ भी नहीं होता, ऐसा नहीं हैं
भो ज्ञानी! जो मूर्छा का निमित्त होता है, वह बहिरंग परिग्रह हैं इसलिए निमित्त नहीं होगा, तो अंतरंग परिग्रह भी नहीं होगां आचार्य भगवान् ने निमित्त होने के कारण को भी परिग्रह कहा हैं परद्रव्य मूर्छा के हेतु हैं, ममत्व के कारण हैं, इसलिए कारण को भी परिग्रह कह दिया हैं पर वास्तव में परिग्रह तो ममत्व-परिणाम ही हैं लेकिन उस परिणमन का जनक तो परद्रव्य ही हैं इसलिए उनको भी छोड़ना चाहिएं अतः, 'मूर्छा परिग्रहः' जो कहा है, परद्रव्य का सद्भाव ही परिग्रह हैं कभी यह मत कह बैठना कि मूर्छा छोड़ों मूर्छा भी छोड़ो, परद्रव्य को भी छोड़ों जो कषाय से रहित वीतरागी है, उनके भी कार्माण-वर्गणाएँ आ रहीं हैं, भो ज्ञानी ! वे मूर्छा के अभाव में ही आ रहीं हैं, मूर्छा के सद्भाव में नहीं आ रही हैं; क्योंकि वीतरागियों के राग नहीं होता हैं इसलिए परद्रव्य का होना मात्र परिग्रह नहीं है, साथ में मूर्छा का होना भी परिग्रह हैं यदि परद्रव्य को ही परिग्रह मान लोगे, तो समवसरण में विराजमान तीर्थंकरों से बड़ा परिग्रही कोई नहीं है और इतना बड़ा परिग्रही तो सिद्धालय में नहीं जाएगा, वे नरक में चले जाएँगें इसलिए वहाँ क्या कहना ? उनके कषाय नहीं हैं इसलिए बाहरी द्रव्यों का होना, भिन्न द्रव्यों का होना यदि बंध करा देगा तो अग्नि के देखने से आँखें जल जाएँगी इसलिए परिग्रह का होना व परिग्रह में लिप्त होना, इन दोनों से ही कर्म-बंध होता है, इसको
समझनां
भगवान श्री पार्श्वनाथ ,
श्री कासन छेत्र, मानेसर,
गुडगाँव (निकट दिल्ली)
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