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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 335 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
करेंगें आप पूरे भारत का ही भोग नहीं कर पा रहे हो, यदि ढाईद्वीप में परिमाण करने की भावना नहीं, तो पक्के में नरक-आयु का बंध हो चुका हैं मनीषियो! परिग्रह उतना ही मिलना है, जितना पुण्य है, राग कितना ही कर लों आचार्य भगवान् कह रहे हैं कि मिथ्यात्व, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, चार कषाय (क्रोध, मान, माया, लोभ) ये चौदह अंतरंग-परिग्रह हैं
भो ज्ञानी! जब तक आप जिनवाणी पढ़ोगे नहीं , सुनोगे नहीं, तो जिनेन्द्रदेव की आज्ञा मालमू कैसे होगी? अर्हत की आज्ञा क्या है और तुम्हारा सोच क्या है ? सोच में शिथिलाचार/ आडंबर है, किंतु जिनेन्द्र की आज्ञा नहीं हैं जिनेन्द्र-आज्ञा तो शुद्ध हैं जितनी आपकी सामर्थ हो, उतना पालन करों
श्री दिगंबर जैन पंचायती मंदिर, मस्जिद खजूर किनारी बाज़ार, दिल्ली.
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