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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 306 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
'मत हरो किसी का प्राण' अर्थानाम य एते प्राणा एते बहिश्चराः पुंसाम् हरति स तस्य प्राणान् यो यस्य जनो हरत्यर्थान् 103
अन्वयार्थ : यः जनः यस्य = जो पुरुष जिस (जीव ) के अर्थान् हरति = पदार्थों को या धन को हरण करता हैं सः तस्य = वह पुरुष उस (जीव ) के प्राणान् हरति = प्राणों को हरण करता हैं ( क्योंकि जगत में) ये एते = जो यें अर्थानाम= धनादिक पदार्थ (प्रसिद्ध है) एते पुसां =वे सब ही पुरुषों के बहिश्चराः प्राणः सन्ति = वाह्य प्राण हैं
हिंसायाः स्तेयस्य चनाव्याप्तिः सुघटमेव सा यस्मात्
ग्रहणे प्रमत्तयोगो द्रव्यस्य स्वीकृतस्यान्यैः104
अन्वयार्थ : हिंसाया च स्तेयस्य = हिंसा में और चोरी में न अव्याप्तिः = अव्याप्तिदोष नहीं हैं यस्मात् अन्यैः = क्योंकि दूसरों के द्वारा स्वीकृतस्य = स्वीकृत कियें द्रव्यस्य ग्रहणे प्रमत्तयोगः = द्रव्य ग्रहण करने में प्रमाद का योगं सा = वह (हिंसा) सुघटमेव = अच्छी तरह घटता है, इसलिये
नातिव्याप्तिश्च तयोः प्रमत्तयोगैककारणविरोधात्
अपि कर्मानुग्रहणे नीरागाणामविद्यमानत्वात् 105 अन्वयार्थ : च नीरागाणाम् =और वीतरागी पुरुषों के प्रमत्तयोगैककारणविरोधात = प्रमादयोगरूप एक कारण के विरोध में कर्मानुग्रहणे =द्रव्यकर्म, नोकर्म की कर्मवर्गणाओं के ग्रहण करने में अपि स्तेयस्य =निश्रचयकर के चोरी के अविद्यमानत्वात = उपस्थित न होने सें तयोः अतिव्याप्तिः न = उन दोनों में अर्थात् हिंसा और चोरी में अतिव्याप्ति भी नहीं हैं
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