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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
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पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 250 of 583
ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
धर्म को कभी खोजना मतं धर्म तो अपने पास हैं प्रत्येक जीव के पास धर्म हैं अधर्म किसी के पास नहीं कुछ लोग शास्त्रों में तो कुछ तीर्थों में धर्म खोज रहे हैं जबकि जिनवाणी कह रही है कि तुम धर्म को खोज रहे हो या खो रहे हो? तीर्थंकर की भूमि का परिचय वही देगा, जो यहाँ से रत्नत्रय धर्म को लेकर जायेगां इसलिए धर्म के लिए स्थान की खोज वह करेगा, जिसने धर्म को समझा नहीं! एक जगह एक सज्जन ने कहा- महाराजश्री! हम ध्यानकेंद्र बना रहे हैं अरे! ध्यान यदि केंद्र पर चला जाये तो ध्यानकेंद्र बनाने की आवश्यकता ही नहीं ध्यानकेंद्र तो पूरा ढाई द्वीप हैं अन्यथा जितने निर्वाण को प्राप्त हुए है उन सबको पहले ध्यान केन्द्र बनाना पड़ता, लेकिन तेरी विशुद्ध आत्मा ही ध्यान केंद्र है, जिसमें निज ही ध्याता है और निज का ही ध्यान होता हैं अतः, कोई स्थान खोजने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि तीर्थ बाद में बने हैं, तीर्थंकर पहले हुये हैं, जे गुरुचरण जहाँ घरें जग में तीरथ होए अर्थात निग्रंथों ने तीर्थ नहीं बनाये निग्रंथ के जहाँ चरण पड़ गये, वहाँ तीर्थ बन गयें तीर्थंकर भगवंतों की देशना जहाँ खिरी, वह तीर्थ बन गयां जहाँ साधना की, वह तीर्थ बन गया और जहाँ निर्वाण को प्राप्त हुये, वह तीर्थ बन गयें इसलिए अब बताओ, कौन-से क्षेत्र को अतीर्थ कहें? भारत के कौन-से प्रदेश पर तीर्थंकर भगवंतों व निग्रंथों का विहार नहीं हुआ ? तथा तीनलोक में ऐसा कौन-सा प्रदेश है, जहाँ केवली भगवंत की केवली - समुदघात के समय आत्म- प्रदेश स्पर्शित न हुए हो? अतएव तीनों लोक तीर्थ हैं आप एक काम कर लो, जहाँ पाप करने का निर्जन स्थान मिले उसे खोजो, लेकिन जहाँ तीर्थंकरा भगवंतों के चरण, उनकी वर्गणायें और प्रदेश फैले हों, ऐसे क्षेत्र को छोड़ देनां इसलिए ध्यान रखना, पुण्य-क्षेत्र खोजने की आवश्यकता नहीं हैं पुण्य-क्षेत्र तो सर्वत्र हैं आज पाप-क्षेत्र खोजने की आवश्यकता है, जहाँ तुम पाप कर सकों इतना गंभीर चिंतवन जब तक नहीं ले जाओगे, तब तक पाप से परिणति नहीं हटेगी, क्योंकि आप लोग सोच लेते हो कि यहाँ कोई नहीं देख रहा, यह तोअशुद्ध-स्थान हैं अरे! जिस दिन तुम्हारे घर में निग्रंथ गुरु के चरण पढ़े, उसी दिन तुम्हारा घर तीर्थ हो चुकां
भो ज्ञानी! शौक के पीछे इतना ध्यान नहीं रख पा रहा है कि कितना शोक मुझे आगे सहन करना होगा शोक से बचना है तो शौक करना छोड़ देनां ध्यान रखना, ये ठीक नहीं कि इस उत्तम पर्याय का तुम विघात कर रहे हों पुरुष बनकर रहो, पुरुषार्थ करो, श्रेष्ठ काम करों भगवान कह रहे हैं-हिंसा के भाव मत बनाना, स्त्रियों से कभी मत झगड़नां झगड़ा करने से तनाव बढ़ता है और तनाव से पाचन-तंतु काम नहीं करते, उसका भोजन नहीं पचता, खाने को मन नहीं करता, बीमारियाँ होती हैं पहले शरीर बीमार हुआ, फिर मन बीमार हुआ, फिर धर्म भी बीमार हो गयां इसलिए ऐसे काम मत करों जिनवाणी में कितना अच्छा लिखा है - मनशुद्धि, वचनशुद्धि, कायशुद्धि, आहार-जल शुद्ध हैं इन चारों शुद्धियों का ध्यान रख लो आज से कषाय मत करना, झगड़ना मतं आचार्य भगवान् गृहस्थों की समुचित व्यवस्था बता रहे हैं यदि एक बाल्टी पानी से Visit us at http://www.vishuddhasagar.com
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