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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 257 of 583 ISBN # 81-7628-131-
3 v -2010:002 "पूजन के निमित्त भी हिंसा अकरणीय है"
पूज्यनिमित्तं घाते छागादीनां न कोऽपि दोषोऽस्तिं
इति संप्रधार्य कार्य नातिथये सत्वसंज्ञपनम् 81 अन्वयार्थ : पूज्यनिमित्तं = पूजने योग्य पुरुषों के लिए छागादिनां = बकरा आदिक जीवों के घाते = घात करने में कः अपि दोषः नास्ति = कोई भी दोष नहीं हैं इति संप्रधार्य = ऐसा विचारकरं अतिथये = अतिथि व शिष्ट पुरुषों के लिए सत्वसंज्ञपनम् =जीवों का घातं न कार्य =करना योग्य नहीं हैं
बहुसत्वघातजनितादशनाद्वरमेकसत्वघातोत्थम् इत्याकलय्य कार्य न महासत्वस्य हिंसनं जातुं 82
अन्वयार्थ : बहुसत्वघातजनितात् = बहुत प्राणियों के घात से उत्पन्न हुएं अशनात् =भोजन से एकसत्वघातोत्थम् =एक जीव के घात से उत्पन्न हुआ भोजनं वरम् = अच्छा हैं- इति अकलय्य = ऐसा विचार करके जातु = कदाचित् भी महासत्वस्य = बड़े जीवकां हिंसनं न कार्य = घात नहीं करना चाहिएं
मनीषियो! आचार्य भगवान् अमृतचंद स्वामी ने बहुत ही अनुपम सूत्र दिया है कि इस जीव ने अनेक बार देशना को सुना, लेकिन देशना को प्राप्त नहीं कर सकां मनीषियो! विनयपूर्वक जिसने जिनवाणी का श्रवण किया और निश्चल/निष्कम्प होकर जिसने श्रुत की आराधना की, उस जीव को वर्तमान का श्रुत भविष्य में देशनालब्धि का कारण होता हैं कदाचित् अशुभ कर्म के योग से जीव को दुर्गति का भाजक भी बनना पड़े, फिर भी देशना नहीं छोड़नां क्योंकि देशना से आपके दुर्गति में भी शुभ के संस्कार जाग्रत हो जाएँगे, वहाँ सम्यक्त्व प्राप्ति हो जाएगी यह जिनवाणी नरक में भी देशनालब्धि का काम करेगी यदि आपने जिनवाणी का अविनय कर लिया, श्रुत को निर्मल दृष्टि से नहीं समझा, तो आपको अशुभ गति का बंध हो जायेगां ध्यान रखना, जब आप भगवान् की पूजा ऐसे भक्तिभाव से करते हैं कि अन्य भी आपकी आवाज को सुनकर ऐसा सोचने लगें कि थोड़ा सुन लूँ, पूरा ही सुन लूँ अरे! ऐसा कभी नहीं बोलना कि बगल में पूजा
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