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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 290 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
जगह-जगह झूठ बुलवाता रहता हैं अरे भाई! मीठी-मीठी कहकर सीधी कह दो या मौन ले लो, क्योंकि सत्य का पालन मौन के बिना हो नहीं सकतां
मनीषियो! अस्ति को नास्ति कर दिया, नास्ति को अस्तिं जैसे किसी ने पूछा अमुक पदार्थ परन्तु कह दिया अन्य पदार्थं यह दूसरा असत्य हैं पंचमकाल में कोई ऋद्धियाँ नहीं होती, तीर्थकरों का जन्म नहीं होता, तीर्थकर-प्रकृति का बंध भी नहीं होता, क्षायिक-सम्यक्त्व नहीं होता, मोक्ष भी नहीं होता और पंचमकाल में केवलज्ञान भी नहीं होतां अब अन्तरंग से पूछो कि जो परिणति तेरी नहीं है, जो अवस्था तेरी नहीं है, जो धर्म तेरा नहीं है, जो भूमिका तेरी नहीं है, उस भूमिका में तू जी रहा हैं अतः जिनवाणी कह रही है कि तू निर्विकल्प अवस्था को प्राप्त नहीं हो सकतां आचार्य शुभचंद्र स्वामी ने स्पष्ट लिख दिया
धर्मनाशे क्रियाध्वंसेः सुसिद्वांतार्थ विप्लवें अप्रष्टेरपि वक्तव्यं, तत्स्वरूपप्रकाशनें 15/सर्ग-9/ज्ञाना
हे मुनि! आपको मौन रहना चाहिएं लेकिन जहाँ धर्म का नाश हो रहा हो और तुम मौन बैठे हो, तो क्या आप धर्मात्मा हो? तुम्हारे देखते-देखते व्यक्ति व्यसनों में जा रहा है और आप समझ रहे हो कि यदि मैं समझा दूँगा तो यह मान लेगां हित की बात कहने में यदि आपको बुरा भी बनना पड़े, तो भी कोई बात नहीं पर उससे बोल ही देना बाद में क्षमा माँग लेनां जब धर्मात्मा ही नहीं बचेंगे, सभी पापों में लिप्त हो जायेंगे तो धर्म का नाश तो अपने आप होगां इसीलिए प्रत्येक धर्मात्मा के परिणामों को संभालकर रखना तम्हारा कर्तव्य हैं ऐसा नहीं है कि उनकी वह जानें ये धर्मात्मा–भाव नहीं हैं, स्वार्थ भाव हैं इसीलिए वहाँ आप जरूर बोलना, जहाँ आगम-विहित क्रियाओं का ध्वन्स किया जा रहा हों
भो ज्ञानी! जिनशासन में सिद्धान्त शाश्वत हैं जिनशासन तीर्थंकर-शासन नहीं होता है, जिनशासन शाश्वत संस्कृति है और अनादि हैं संस्कृति का संचालन करने के लिये तीर्थकर जन्म लेते हैं यदि तीर्थकरों से सिद्धांत बनाओगे तो सादि हो जायेगां तीर्थकर सादि-सान्त होते हैं और सिद्धांत अनादि-अनन्त होता हैं भगवान आदिनाथ स्वामी ने वही कहा है, जो पूर्व के तीर्थकर कह चुके थे भगवान महावीर स्वामी ने वही कहा है, जिसे आदिनाथ/आदि-भगवान् कह चुके थें यदि अलग से कहते तो कहलाता कि तीर्थकर ने कहा हैं तीर्थकर भगवान् ने वही कहा है-जो है, और जो होता हैं जो होता है, वह अनादि होता हैं सत्य को दबाया जा सकता है, सत्य को ढाँका जा सकता है, सत्य को गौण किया जा सकता है और सत्य को पीटा जा सकता है, लेकिन सत्य को तुम नष्ट नहीं कर सकतें सत्य तो सूर्य होता हैं कितने ही असत्य के बादल ढंक
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