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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज
Page 297 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 पूरी बात ही नहीं बता रहे; पूरी बता देंगे तो रहस्य खुल जायेगां सोचते रहों ऐसे बहुत सारे लोग होते हैं कि आधी बताई और आधी छुपा गयें ध्यान रखो, इससे हिंसा का दोष लगेगा, क्योंकि दूसरे को संक्लेषता में डाल गयें इसीलिए स्पष्ट, मृदु , यथार्थ बोलो, समय देख कर बोलो, सत्य ऐसा बोला कि युद्ध हो गयां वहाँ ऐसा सत्य नहीं बोलनां विवेक पूर्वक बोलों आगम के विपरीत कथन करना उत्सूत्र कहलाता हैं यह भी असत्य हैं कोई व्रत लेने जा रहा था और उसे ले गये होटल में, ऐसे उन्मार्ग में लगा देना यह भी असत्य हैं यह सारे के सारे वचन गर्हित हैं यानि निन्दनीय हैं ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं करनां घर में क्लेश क्यों होता है? वाणी के पीछे वाणी-संयम आ जाये तो प्राणी-संयम अपने आप पलने लग जायें अहो द्रोपदी! आपकी जीभ नहीं हिलती तो तलवारें नहीं हिलती "अंधे की औलाद अंधी होती है" इतना ही तो कहा था इसलिए ऐसे शब्द उपयोग नहीं करना अरे! इसको छेद दो, इसको भेद दो, तू मर जा, सुनो यह सावद्य-हिंसा के वचन हैं तुम यहाँ से पशु खरीदना और वहाँ जाकर बेच देना, ऐसे हिंसा के व्यापार आदि का उपदेश करना, वह भी असत्य है और हिंसा हैं आरंभ की सलाह दूसरों को क्यों दे रहे हो, सलाह दो तो ऐसी दो कि, भइया! तुम साधु बन जाना और साधना करना इसीलिए ध्यान रखो, संयम की बात तो करना, पर अंसंयम की बात कभी नहीं करना
भो ज्ञानी आत्माओ! विवेक से सोचो, चोरी न करो, झूठ न बोलो सब सावध वचन हैं जिससे प्राणी का वध हों यह सब असत्य है, झूठ हैं मनीषियो! अपने जीवन में इनसे दूर रहनां
भव्य श्री जिन मंदिर, धर्मपुरा, दिल्ली
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