________________
पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
:
पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 300 of 583
ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
कोई धोखा नहीं होता है क्योंकि वस्त्रों में विश्वास को दिखाया नहीं जा सकता है अविश्वास को छुपाया जाता हैं
भो ज्ञानी ! स्वयं की बात बताओं पर से छिपाते छिपाते स्वयं से छिपा रहे हो, स्वयं को ही छिपा रहे हों अहो! यह अध्यात्म विद्या हैं इसीलिए सत्य नग्न ही होता है; निर्दोष होता है, शाश्वत होता हैं वही 'सुख शक्ति हैं ध्यान रखो, नाटक में दर्शकों को राम दिखा सकते हो, पर स्वयं में तुम राम नहीं हो सकतें यहाँ सब लीलाओं के राम बैठे हैं, लीलाओं के नाटक चल रहे हैं सत्य राम तो तेरा आतम-राम हैं उसे जान नहीं पा रहे हो कि कौन है आतमराम? इसीलिए राग कर रहे हो, असत्य से द्वेष कर रहे हों अहो! आप को हँसी आ रही हैं किसकी हँसी उड़ा रहे हो? भो ज्ञानी! जब तक धन और धरती में राग- परिणति है, तब तक निराकुलता कहना सफेद-असत्य हैं पंडित आशाधर जी ने 'सागार धर्मामृत' में लिखा है - श्रावक यानि गृहस्थं जो चार संज्ञाओं से और परिग्रह से दूषित हो, उसी का नाम गृहस्थ हैं जब तक गृहस्थ है, तब तक वह छूट नहीं सकता इसीलिए पंडित दौलतरामजी ने कह दिया “आकुलता शिवमहीं (शिवालय में) नहीं है, सिद्धशिला पर नहीं हैं स्वरूप में नहीं है आकुलतां इसीलिए शिवमार्ग पर चलना चाहिए
भो ज्ञानी! आचार्य भगवान् अमृतचन्द्र स्वामी कह रहे हैं कि आप सत्य को समझते जाओ, लेकिन असत्य की भाषा को मत बोलना, असत्य के भाव नहीं बनानां भावप्राणों का वियोग हो जाये, संक्लेषता की वृद्धि हो जाये और शुभ परिणामों का विघात हो जाये, ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं करनां आप बनिया हों कैसे-कैसे तौल - तौलके देते हो, कांटे पर रख-रखकर देते हो, वैसे ही वाणी को तौला करों वाणी नहीं तौलते इसी का परिणाम है कि शांति भंग हो जाती हैं अरति को उत्पन्न करने वाला सत्य नहीं बोलनां जिससे परस्पर का प्रेम समाप्त हो, उसका नाम अरति भाव हैं रति यानि अनुराग, और अरति यानि द्वेषं द्वेष को उत्पन्न करने वाले शब्दों को बोलना, अप्रीति को बढ़ाने वाले शब्दों को बोलना, यह भी असत्य हैं अरे ! दूसरे को डरा देना, धमकी दे देना, मैंने कहा है वह होना चाहिए, आपने इधर से उधर कुछ किया तो समझ लेना अहो! हमने आपको तो समझ लिया कि आप नहीं बोल रहे हो, यह आपकी कषाय बोल रही है, आपका अहम् बोल रहा है, आपका मिथ्यात्व बोल रहा है, अश्रद्धान बोल रहा हैं आपके भयभीत करने से उसको इतनी घुटन पैदा हुई कि वह मूर्च्छा खाकर गिर पड़ा और मर भी गयां बोले- मैंने तो कुछ नहीं कियां अरे! तुमने सबकुछ तो कर डाला, अब बचा ही क्या ? ऐसा भय होता है कि लोग बीमार हो जाते हैं बच्चा रो रहा है तो चुप कराने के चक्कर में कह दिया वह हऊआ आ गया तुमने उसका जीवन बर्बाद कर दिया, 'हऊआ' कहकर हऊआ ही बना दियां अरे भाई! उसको समझाओं आचार्य कुन्दकुन्ददेव की माता भी तो अपने बच्चे को खिलाती थीं कहती थीं- "शुद्धोऽसी बुद्धोऽसी आप बेटे को तत्वार्थसूत्र' पढ़ाना, भक्तामर सिखा देना, अच्छी बातें सिखा देनां इसीलिए ध्यान रखना, भयभीत नहीं करना, उसको पुचकारना, समझाना; लेकिन डराना
Visit us at http://www.vishuddhasagar.com
Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com
For more info please contact: akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com