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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 261 of 583 ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
हैं कुछ लोगों की सोच है कि भाव तो शुद्ध है, पर भाव के साथ-साथ द्रव्य की शुद्धि भी अनिवार्य हैं अहो ! सूतक पातक लगा हो अथवा मुर्दा को जलाकर आये, यहाँ भगवान् का अभिषेक करने लगें बोले- हमारे भाव शुद्ध हैं अहो! ऐसा अनर्थ मत कर देना, द्रव्य की शुद्धि भी रखना, साथ में भाव -शुद्धि भी रखना परम आवश्यक हैं आचार्य भगवान् कह रहे हैं- पूज्य के निमित्त से यदि आपने छल-कपट की, मायाचारी की हिंसा की है, तो कर्म का बंध होगा, निर्बंधता नहीं मिलेगीं घर में मेहमान आये, सत्कार करने बाजार से मीठा खरीद लाये, गोली - बिस्कुट खरीद लाये, लेकिन यह नहीं पूछा कि इनमें है क्या? अतिथि - सत्कार तो करना, पर रात्रि में भोजन नहीं करानां उनसे कहना कि मैंने गुरुचरणों में नियम लिया हैं हम आपका कल अच्छा सत्कार करेंगे, लेकिन रात्रि में हम नहीं खिला पाऐंगें संबंध कल टूटता था, तो अभी टूट जाये, लेकिन यदि नियम तोड़ा, मायाचारी की, तो तुम्हारा व्रत भंग हो गयां ध्यान रखो व विवेक लगाओ, अनंत पर्याय बीत गई संसार के दुःखों को भोगते - भोगते, अब मायाचारी न करो
श्री १०८ आचार्य विद्यासागरजी महाराज ससंघ
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