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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 184 of 583 ISBN # 81-7628-131-
3 v -2010:002 'परिणति से हिंसा/अहिंसा'
अविधायापि हि हिंसा हिंसाफलभाजनं भवत्येक कृत्वाप्यपरो हिंसा हिंसाफलभाजनं न स्यात् 51
अन्वयार्थः हि = निश्चयकरं एकः हिंसा अविधाय अपि = एक जीव हिंसा को नहीं करके भी हिंसाफलभाजनं भवति = हिंसा के फल का भोगने का पात्र होता हैं अपरः = दूसरां हिंसा कृत्वा अपि = हिंसा करके भी हिंसाफलभाजनं = हिंसा के फल को भोगने का पात्रं न स्यात = नहीं होता हैं
एकस्याल्पा हिंसा ददाति काले फलमनल्पमं अन्यस्य महाहिंसा स्वल्पफला भवति परिपाकें 52
अन्वयार्थः एकस्य = एक जीव को अल्पा हिंसा = थोड़ी हिंसां काले = उदयकाल में अनल्पम् फलम् ददाति = बहुत फल को देती हैं अन्यस्य = दूसरे जीव को महाहिंसा = बड़ी भारी हिंसा भी परिपाके = उदय समय में स्वल्पफला भवति = बिल्कुल थोड़े फल को देनेवाली होती हैं
मनीषियो! अंतिम तीर्थेश भगवान महावीर स्वामी की पावन देशना हम सभी सुन रहे हैं कि हिंसा वहीं है, जहाँ हिंसा के साधन हैं जब तक तुम्हारे घर में अंतरंग साधन (कषाय परिणाम) और बहिरंग साधन (बाहरी परिग्रह) तथा हिंसा के आयतन होंगे, तब तक अहिंसाभाव नहीं होगां आप किसी से झगड़ो या न झगड़ो, परंतु लड़ाई के साधन घर में नहीं रखनां आप शत्रु से अपने परिवार की रक्षा के लिए घर में अस्त्र रखकर कहते हो कि इससे मेरी रक्षा होगीं अरे! यदि पुण्य का अस्त्र तेरे घर में है तो शत्रु का चक्र भी तेरे काम में नहीं आयेगां
अमृतचंद्र स्वामी कह रहे हैं कि हिंसा के साधनों को आप घर में इसलिए रखे हो कि मेरी रक्षा होगी पर ध्यान रखो, वही अस्त्र तेरे लिए मृत्यु का कारण भी हो सकता हैं इसलिए घर में ऐसे उपकरण भी मत
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