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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 247 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
हो, पाप-बहुल और माया से भरा हो, उसका नाम तिर्यंच हैं आज घर में जाकर चिंतवन करना है कि हम मनुष्य हैं कि तिर्यंच? इसीलिए कारिका में अमृतचंद्र स्वामी यह कह रहे हैं कि-मननशील हो, तो कुटिलता छोड़ दों ध्यान रखना, अभी विवेक काम कर रहा है, बुद्धि काम कर रही है और पुण्य काम कर रहा है, इसलिए सुकृत्य के काल में सुकृत्य कमा लो, दृष्कृत्य के काल में सुकृत्य के भाव नहीं आते हैं सिद्धांत का नियम है कि आयुबंध के काल में अशुभ परिणाम जिनके होंगे, जब उनका मृत्यु का समय आयेगा, नियम से संयम छोड़ देगा और जो जीवन भर आपको पाप में लगा दिखा, परंतु उस के आयुबंध के काल में परिणति निर्मल थी और मृत्यु का काल आयेगा तो सब पाप छोड़ देगां कहेगा-मेरी सल्लेखना करा दो, ऐसे भाव करता हैं यह आपके जीवन की निर्मल घड़ी हैं अपने 'अपने' की निहारनां
भो ज्ञानी! आपको उत्कृष्ट मार्ग यही है कि नव कोटि से हिंसा का त्याग होना चाहिये लेकिन अहिंसारूपी धर्म को अच्छी तरह से सुनकर भी जो स्थावर-हिंसा को नहीं छोड़ पा रहे हैं कि तो उन्हें त्रस-हिंसा तो छोड़ ही देना चाहिएं गृहस्थों के लिये कह रहे है आप भोजन बनाते हो, व्यापार आदि करते हो, इसमें एकेन्द्रिय जीव का घात हो रहा हैं लेकिन वहाँ भी ध्यान रखनां नल खोल दिया तो पानी बह ही रहा है, अग्नि जल रही है तो जल ही रही हैं किसी जीव का न वध करना, न करवाना, न अनुमोदना करना, न मन से करना, न वचन से करना, न शरीर से करनां कृत कारित अनुमोदना से, नवकोटि से त्याग किया है, वही यथार्थ मार्ग हैं यदि आपसे उतना पालन नहीं हो सके तो आचार्य महाराज कह रहे हैं कि जितना आपसे बने, उतना ही आप पालन करें, उसमें प्रमाद न करें ऐसा भी न कहें कि त्याग थोड़ा है, अतः त्यागी नहीं हों अहो! किसी के विराधक और विदारक भी मत बनों इतने स्वच्छंदी मत हो जाओ कि जिसमें अगली पर्याय का भी ध्यान न रहें ध्यान रखना जो आपको पुण्य के योग से सम्पत्ति मिली, सुख मिला , सुविधाएँ मिली हैं उसमें इतने तल्लीन मत हो जाओ कि आगे खोखले-के-खोखले रह जाओं यहाँ तो आप पुण्य से भर कर आये थे और यहां से पाप से भर कर चले गयें इसीलिए, जितने पुण्य से भर कर आये थे, उससे भी अधिक भर कर जाओ, जबकि उत्तम तो यही है कि दोनों से खाली होकर जाओं यदि नहीं जा पा रहे हो तो कम-से-कम पाप के मल से भरकर तो मत जानां
निःधूम अग्नि (सोलह सपने)
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