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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 228 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002
मनीषियो! आप जैन हो, कम-से-कम अपनी पहचान को मत मिटाओं तुम्हारी पहचान रात्रि में खाना-खाने से नहीं होगी, अभक्ष्य खाने से नहीं होगीं भो ज्ञानी ! आचार्य भगवान् कह रहे हैं कि आप अपने पुण्य को पैसे के पीछे बरबाद मत कर देनां कितना प्रबल पुण्य-संचय किया होगा आप लोगों ने कि इतना सबकुछ मिलां अहो! जो माँस का सेवन करता है, खाना तो दूर, छूता भी है, वहीं करोड़ों जीवों का घात हो गयां अब सोचना, यदि खानेवाले को भी यह ज्ञान नहीं है, यदि जिनवाणी सुनने के बाद मन भी करेगा, तो विश्वास करना वह चला जायेगा, क्योंकि अज्ञानता में जीव उसे जीव ही नहीं मानतें अरे! मछली भी जीव है, यह कोई फल-फूल नहीं है, यह जीव ही है, इनमें भी संवेदना / चेतनत्व हैं इसलिये, भो ज्ञानियो ! अपनी सम्वेदनाओं को जाग्रत करो, सम्वेदनशील बनो, किसी जीव के प्राणों का विघात मत करों
आचार्य श्री १०८ विद्यानंद जी महाराज
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