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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 232 of 583 ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
से बड़ा स्वार्थी जीव कोई नहीं है, जो एक- इन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक का शोषण कर रहा है और फिर भी कहता है कि मैं श्रेष्ठ हूँ अरे! श्रेष्ठ तो है, पर इन कामों से श्रेष्ठ नहीं हैं
भो मनीषियो ! देश की स्थिति बड़ी विचित्र हैं लोग माँस की खेती करने लगे हैं, मछली पालन, मुर्गीपालन, मधुमक्खीपालनं अहो ! हिंसा की कोई खेती नहीं होती है, यह तो पूर्णतया संकल्पी हिंसा हैं चिरगाँव में एक शर्माजी थें उन्होंने ऋण लेकर ऐसी खेती के लिए फार्म भर दिया, स्वीकृति मिल गयी और 'पुरुषार्थ सिद्धि' के प्रवचन चल रहे थे, अचानक सुनने बैठ गयें प्रवचन के तुरन्त बाद आये, महाराज! बचा लिया आपने, मैं तो फार्म भर चुका था, स्वीकृति आ चुकी हैं तैयारियाँ चल रही हैं अतः ध्यान रखना, महीनों का आसव (सीरप) रखा है, वह भी मधु से कम नहीं हैं बहुत सारी औषधियों में भी मधु होता हैं जो मधु का सेवन करता है, वह अत्यंत हिंसक होता हैं मधु स्वयं भी क्यों न टपक रहा हो या छल से उस शहद के गोले को ग्रहण करता है, उसमें भी हिंसा होती है, क्योंकि उसके आश्रय से उत्पन्न होनेवाले जीवों का घात होता हैं अरे! किसी भी प्रकार से शहद का प्रयोग नहीं करना चाहियें अतः मधु का सेवन न स्वयं करना, न कराना, न सेवन करने वाले का अनुमोदन करना हैं अपने जीवन में अहिंसा - धर्म मात्र की ओर बढ़ना हैं
संघीजी का मंदिर, सांगानेर, जयपुर, राजस्थान
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