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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 215 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
"मदिरापान के दुष्परिणाम " रसजानां च बहूनां जीवानां योनिरिष्यते मद्यम् मद्यं भजतां तेषां हिंसा संजायतेऽवश्यम् 63
अन्वयार्थ : च मद्यम् = और मदिरां बहूनां = बहुत से रसजानां जीवानां =रस से उत्पन्न हुए जीवों की योनिः इष्यते = योनि (उत्पत्ति स्थान) मानी जाती हैं मद्यं भजतां = मदिरा का सेवन जो करते हैं तेषां हिंसा = उन जीवों की हिंसां अवश्यम् संजायते = अवश्य ही होती हैं
अभिमानभयजुगुप्साहास्यारतिशोककामकोपाद्या हिंसायाः पर्यायाः सर्वेऽपि च सरकसन्निहिताः 64
अन्वयार्थ : च = और अभिमान भयजुगुप्सा हास्यारतिशोक-घमण्ड,डर,ग्लानि, हास्य,अरति,शोक कामकोपाद्याः = काम,क्रोध आदि हिंसायाः पर्यायाः = हिंसा के पर्याय या भेद हैं सर्वेऽपि सरकसन्निहिताः = यह सब ही मदिरा के निकटवर्ती हैं
__ भो मनीषियो! तीर्थेश भगवान महावीर स्वामी की दिव्यदेशना में आया है कि निज चैतन्य- भावों का निग्रह जिस परिणति से हो, वह हिंसा है तथा जिन परिणामों से आत्मा की निर्मलता में वृद्धि हो, उसी का नाम अहिंसा हैं अतः, विशुद्धि की वृद्धि का नाम अहिंसा है और संक्लेश-स्थानों की वृद्धि का नाम हिंसा हैं हिंसा तो परिणामों की कलुषता है, चाहे वह क्लेश लोभ-कषाय-जन्य हो, चाहे माया-कषाय-जन्य हो, क्रोध या मानरूप हो, कामरूप हो, वह हिंसा का ही परिणाम हैं ध्यान रखना, मन को तो थकान आती है, लेकिन इच्छाओं को थकान नहीं आतीं इच्छाएँ थक जाएँ, तो मन संयम लेने को तैयार हैं भो ज्ञानी! सुख-दुःख दोनों अवस्थाएँ साता-असाता के उदय से हैं सुखरूप वेदन साता कराती है और दुःखरूप वेदन असाता कराती है और वेदन तभी तक है जब तक मोहनीय-कर्म बैठा हैं मोह का मद समाप्त हो जाये, तो दुःख भी महसूस
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