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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 216 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
नहीं होगां ज्ञानी साता में साता नहीं देखता, असाता में असाता नहीं देखतां अज्ञानी दोनों को देखता है, क्योंकि मोह का मद हैं ध्यान से समझना, मदिरा का मद तो सीमा में है, मदिरा को उतारने की भी औषधि है, पर मोह की मदिरा को अनादि से पिया हैं पंडित दौलतराम जी ने लिखा है-"मोह-महामद पियो अनादि!" जीव जानता भी है, समझता भी है, सोचता भी है, किंतु स्वीकार नहीं कर पातां जरा से मोह के पीछे निर्मोही, समरसीभाव से युक्त, परमपरिणामिक, चैतन्य-आत्मा को खो बैठे हैं।
भो ज्ञानी! विश्वास रखना, मोह शाश्वत नहीं है, कर्म का बंध शाश्वत नहीं, शाश्वत मेरी निबंध-दशा ही हैं एकसाथ दो कार्य नहीं होते हैं यदि मोह स्वभाव हो जाय, फिर तो उस निर्मोही अवस्था को विभाव कहना पड़ेगां मोह तेरा सत्य-स्वभाव नहीं है, मोह तेरा विभाव-स्वभाव हैं आप लोग मानो या न मानो, एक समय निर्मोह का आनन्द आपको आता हैं जब आप निश्चिंत होकर बैठे होते हो, कोई विकल्प नहीं होता है, उस समय सोचते तो हैं कि कुछ हैं बस, आप जिसे 'कुछ' कहते हो, वह ही सत्य-स्वभाव हैं वास्तविकता तो यह है कि मसालों के स्वाद ने दाल के स्वाद को नहीं लेने दिया; बादाम-बीज और केशर के घोल ने दूध के असली स्वाद को लेने नहीं दियां ऐसे ही निज स्वभाव की मधुरता को खोकर मोह के स्वाद को ही तू आत्मा का स्वभाव कहने लगा हैं अहो! मोह/राग से रहित भोग को जिस दिन आपने देख लिया, उस दिन आपको लगेगा कि मेरे-जैसा अज्ञानी विश्व में कोई नहीं होगां आचार्य गुणभद्र स्वामी ने 'आत्मानुशासन' ग्रंथ में भी लिखा है
लब्धेन्धनोज्वलत्यग्निः प्रशाम्यति निरिन्धनः ज्वलत्युभयथात्युच्चैरहो, मोहाग्निरूत्कट:56
भो ज्ञानी! यदि अग्नि से भी प्रचंड कोई दावानल है तो उसका नाम मोह हैं अहो! मोह-अग्नि कितनी उत्कट है, जो ईधन के अभाव में भी जलाती हैं जब कोई तुम्हारे संबंधी थे, तब उनके राग में झुलस रहे थे उनकी मृत्यु हो गई, तो वियोग में झुलस रहे हों अरे! वर्तमान को निहार लो, वर्द्धमान बन जाओगे और भूत या भविष्य में जीओगे तो भूत ही बनकर रहोगें भो ज्ञानी! यह कभी मत सोचना कि मेरे बाद क्या होगा? "वस्तु स्वभावो धम्मो", वस्तु का स्वभाव धर्म है, स्वरूप है और स्वरूप कभी नष्ट नहीं होगां हमारी पर्याय नष्ट हो जायेगी, लेकिन धर्म कभी नष्ट नहीं होगां सम्प्रदाय नष्ट हो सकते हैं, पंथ नष्ट हो सकते हैं, आम्नायें नष्ट हो सकती हैं जो बनाई जाती हैं, वे नियम से नष्ट होती हैं जो शाश्वत/ध्रुव होता है, वह कभी नष्ट नहीं होतां धर्म त्रैकालिक अखण्ड ध्रुव-सत्ता है, वह कभी नष्ट नहीं होगी लकड़ियाँ जल जाएँगी, ईधन जल
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