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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 185 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
रखों पुराने लोग कहते हैं कि जब बनिये को गुस्सा आती है तो वह गड़ी हुई ईंट उखाड़ता है, गड़ा पत्थर उखाड़ता है; क्योंकि जब तक पत्थर उखाड़ेगा तब तक सामने वाला भाग जायेगा और उधर तुम्हारा क्रोध भी भाग जायेगा, फलतः दोनों की रक्षा हो गयीं यदि घर में अस्त्र रख लिया और आवश्यकता नहीं थी अस्त्र को चलाने की, फिर भी आपने चला दिया, इसलिए आचार्य अमृतचंद्र स्वामी ने कह दिया कि परिग्रह को छोड़ो, कषायभावों को छोड़ो, जिससे कि अहिंसा का परिणमन हों यदि आपने यह मान लिया कि मैं तो निश्चय स्वभावी हूँ, तो बाहरी चारित्र का लोप हो जायेगा और यदि आपने यह कहा कि मैं तो विभाव में ही जीता हूँ, तो निश्चय –संयम का लोप हो जायेगा जबकि दोनों ही मार्ग हैं आज आप विश्वास करके जाना कि अस्त्र-शस्त्र भी रक्षा के साधन नहीं हैं अस्त्र-शस्त्रों से कोई सुरक्षित या स्वतंत्र नहीं होतां अस्त्र-शस्त्रों से किसी की रक्षा नहीं होती हैं यदि स्वतंत्रता की प्राप्ति अस्त्रों से ही होती तो गांधीजी को भगवान महावीर के अहिंसा-चक्र की क्या आवश्यकता थी?
भो ज्ञानी! अहिंसा के अस्त्र से भारत स्वतंत्र हुआ हैं यदि देह से तू स्वतंत्र होना चाहता है तो अहिंसा महाव्रत को ही स्वीकार कर देश तो गोरों से स्वतंत्र हुआ, तुम 'गोरे' से स्वतंत्र हो जाओं वास्तव में आप इन गोरे शरीरों से परतंत्र हों चर्म को देखकर अचर्म धर्म को भूल रहे हो चमड़ी को देखकर ही तो आप संसार में रम रहे हों हंस-आत्मा निकल जाती है तो उस मुर्दे का स्पर्श करके सूतक मानता हैं अतः, शरीर को पहले से ही मुर्दा मानों शरीर पवित्र नहीं है, पवित्र तो हंस-आत्मा ही हैं इसलिए तू इस तन को मुर्दा मानकर ही चल, तो तेरे संयम का मुर्दा-भाव नाश हो जाएगां अन्यथा तन को जीवित देखकर संयम मर जाता हैं यह शरीर की दशा हैं भगवान् महावीर स्वामी ने कहा है कि यदि तुम्हें अपने देश, परिवार और समाज को सुरक्षित रखना है तो तुम अणुबम की रचना मत करो, तुम तो अणुव्रतों को स्वीकार करना शुरू कर दों श्रमण-संस्कृति का सूत्र है कि अणुव्रती बन जाओगे तो अपने-आप आपकी कषाय मंद हो जाएगी
भो ज्ञानी! हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील को पाप कह लेते हो, पर देखो संसार की दशा; सबसे बड़े पाप 'परिग्रह के धारी को देखकर लोग पुण्य-आत्मा कहते हैं सबसे बड़ा पाप है परिग्रहं इस सूत्र को अपने दरवाजे के ऊपर लिख देनां
यदि पाप निरोधोऽन्यसंपदा किं प्रयोजनम
अथ पापास्रवोऽस्त्यन्यसंपदा किं प्रयोजनम् 27 /र.क.श्रा.
यदि पाप का निरोध है तो, संपदा से क्या प्रयोजन ? कमा भी लोगे तो, पानी की तरह बह जायेगां
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