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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 163 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
आया है-श्रमणोपासकं जैन-आगम में "पुरुषार्थ सिद्धयुपाय" ग्रन्थ ऐसा अनुपम ग्रन्थ है जो अहिंसा और हिंसा के बारे में विशद् कथन करनेवाला हैं आत्मा के परिणामों की घात करना ही हिंसा हैं जरा-सा कुछ हो जाये-'तू मर जा' कहने से नहीं मर रहा है, पर आप कर्म से अवश्य बंध गयें अतः असत्य, चोरी, कुशील, परिग्रह सब हिंसा ही हैं झूठ बोलना भी हिंसा है, परिग्रह का संचय करना भी हिंसा है, कुशील–सेवन भी हिंसा हैं भो ज्ञानी आत्माओ! चोरी करना भी हिंसा ही हैं इसीलिए मनीषियो! ध्यान रखना, इस तत्त्व को समझना हैं मेरी आत्मा समयसारभूत बने और जब तक समयसार नहीं बन पा रहे हो तब तक एक "समयसार" के उपासक तो बने रहें और ऐसी भावनाएँ भाएँ कि मेरी आत्मा में भगवती-आत्मा की अवस्था प्रकट हों
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भगवान कुंथुनाथ,
मुनिगिरी तीर्थ,
कांचीपुरम से १५ किलो मीटर स्थित कारिन्दे गांव, तमिलनाइ
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