________________
पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 174 of 583 ISBN # 81-7628-131-
3 v -2010:002 'कषायवान ही कसाई है'
यस्मात्सकषायः सन् हन्त्यात्मा प्रथममात्मनात्मानम् पश्चाज्जायेत न वा हिंसा प्राण्यन्तराणां तु.47
अन्वयार्थ : यस्मात् आत्मा = क्योंकि जीवं सकषायः सन् = कषायभावों-सहित होने सें प्रथमम् आत्मना = पहले आपके ही द्वारा आत्मानम् हन्ति = आपको घातता हैं तु पश्चात् = फिर पीछे से चाहे प्राण्यन्तराणां = अन्य जीवों की हिंसा जायेत वा न = हिंसा होवे अथवा नहीं होवें
हिंसायाः अविरमणं हिंसापरिणमनमपि भवति हिंसां
तस्मात्प्रमत्तयोगे प्राणव्यपरोपणं नित्यम्.48
अन्वयार्थ : हिंसायाः अविरमणं =हिंसा से विरक्त न होनां हिंसा = हिंसा और हिंसापरिणमनम् अपि = हिंसारूप परिणमन भी हिंसा भवति = हिंसा होती हैं तस्मात् प्रमत्तयोगे = इसलिये प्रमाद के योग में नित्यम् = निरन्तरं प्राणव्यपरोपणं = प्राणघात का सद्भाव हैं
भो मनीषियो! प्रमाद (आलस्य) जीवन का सबसे बड़ा शत्रु है, आत्मा की चैतन्य-ज्योति को बुझानेवाला झंझावत हैं हमारे देखते-देखते आदिनाथ स्वामी भगवान् बन गये, अनंत चौबीसियाँ निकल चुकी हैं, परन्तु हम सोचते ही रहे कि काललब्धि आयेगी, सो वह काललब्धि आज तक नहीं आ सकी हम होनहार पर बैठे रहे, होनहार ऐसी हो गई कि पंचमकाल के मनुष्य बनना पड़ां मनीषियो! परमार्थदृष्टि से देखो तो तुम परमात्मा बन सकते थे, लेकिन प्रमाद ने, आलस्य ने अनुत्साह ने आपको आगे बढ़ने ही नहीं दियां
___ भो ज्ञानी! आवश्यकता भोजन की नहीं, भूख की हैं भूख होती है, तो भोजन की खोज हो जाती हैं भूख नहीं होती है, तो भोजन रखा भी होता है, तो भी कुछ ऐसे प्रमादी होते हैं कि भूखे रह लेते हैं कहते हैंसमय नहीं मिला माँ जिनवाणी कह रही है-बेटा! यह रत्नयत्र का पाथेय तुझे रख रही हूँ, तू उसे सेवन कर
Visit us at http://www.vishuddhasagar.com
Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com