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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 132 of 583 ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
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अन्वयार्थ :
इति = इस प्रकारं आश्रितसम्यक्तवैः = समयग्दर्शनको धारण करनेवाले उन पुरुषों को जो नित्यं आत्महितैः सदा आत्मा का हित चाहते हैं आम्नाययुक्तियोगेः = जिन-धर्म की पद्धति और युक्तियों के द्वारा यत्नेन निरूप्य भले प्रकार विचार करकें सम्यग्ज्ञानं समुपास्यं = सम्यग्ज्ञान को आदर के साथ प्राप्त करना चाहिएं
सम्यक्ज्ञान अधिकार
" आत्म - साधना हेतु सम्यक्ज्ञान" इत्याश्रितसम्यक्त्वैः सम्यग्ज्ञानं निरूप्य यत्नेनं आम्नाययुक्तियोगैः समुपास्यं नित्यमात्महितैः31
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पृथगाराधनमिष्टं दर्शनसहभाविनोपि बोधस्यं
लक्षणभेदेन यतो नानात्वं संभवत्यनयो:32
अन्वयार्थ : दर्शनसहभाविनः अपि सम्यग्दर्शनका सहभावी होने पर भीं बोधस्य = सम्यग्ज्ञान कां पृथगाराधनं इष्टं जुदा आराधन करना अर्थात् सम्यग्दर्शन से भिन्न प्राप्त करना इष्ट हैं यतः = क्योंकि लक्षणभेदेन अनयोः सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान में लक्षण के भेद से नानात्वं संभवति ' = नानापन अर्थात् भेद घटित होता हैं
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मनीषियो! अंतिम तीर्थेश भगवान महावीर स्वामी की पावन पीयूष देशना हम सभी सुन रहे हैं आचार्य भगवान् अमृतचंद्र स्वामी ने बहुत ही करुणादृष्टि से कथन किया हैं जब तक तेरे अंतरंग में वात्सल्य नहीं है, सहजता नहीं है, तब तक आपकी सत्यता भी जीव को कटुता के रूप में महसूस होती हैं वात्सल्य की भाषा में जहर के प्याले को भी जीव पीने को तैयार हो जाएगा, परंतु कटुता की भाषा में अमृत का पान भी स्वीकार नहीं करना चाहतां बालक को भी मालूम है कि दूध पीने से पेट भरेगा, परंतु यदि बर्तन गरम है तो वह भी हाथ से छोड़ देगां इसी प्रकार माँ जिनवाणी कहती है, भो मुमुक्षु ! शीतल सहज होकर भगवान् की देशना करोगे तो उससे एक - इन्द्रिय जीव पर भी प्रभाव पड़ेगा क्योंकि जहाँ सौभाग्यशालिनी स्त्रियाँ बगीचे में प्रवेश कर जाएँ, वहाँ फूल खिलने लगते हैं और अशुद्ध अवस्था में यदि स्त्री ने भोजन-सामग्री को देख भी लिया है