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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
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पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 147 of 583
ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
नहीं पूजा जा सकतां क्योंकि मिथ्यात्व व उपकार का कोई संबंध नहीं आपके गुरु कहें, बेटा! पद्मावति धरणेंद्र की पूजा करा दो, इनकी प्रतिमा विराजमान करा दों प्रभु! आपने मुझे रत्नत्रय धर्म दिया है, मुझे स्वीकार है आपका उपकार, लेकिन रत्नत्रय के साथ मिध्यात्व कैसा ? इसलिए भो ज्ञानी जो बात करो, सौटंच की करो, कोई लाग-लपेट नहीं करना जो है, सो हैं कल रूठो सो आज रूठ जाओ, तुम्हारे रूठने से मेरा कल्याण या अकल्याण कुछ नहीं होगा परन्तु यदि मेरा सम्यक्त्व रूठ गया तो मेरे अनंत-संसार खड़े हो जाएंगे
भो ज्ञानी! ग्रन्थ का शुद्ध वाचन करना यह ग्रंथाचार कहलाता हैं अतः, ग्रंथ भी शुद्ध पढ़ें अर्थ भी शुद्ध निकालें यदि नहीं बनता तो मौन हो जाना; परंतु अन्यथा - अर्थ मत निकालनां मध्याह्न संधि - बेला में कभी जिनवाणी का वाचन नहीं करनां सामायिक के कालों में शास्त्र नहीं पढनां याद हो या न हो, पर कालाचार का ध्यान रखनां अकाल में आप भक्ति - पाठ कर सकते हों जब भी कोई जिनवाणी का स्वाध्याय करें, कोई न कोई नियम लेकर बैठें इसका नाम है उप-धानाचारं बहुमान के साथ खड़े हो जाओं अन्तिम अंग है अनिह्नवाचारं तुम पढ़-लिखकर बड़े हो गये, अब छोटे का कौन नाम लें कुछ ऐसे जीव होते हैं जो शास्त्र पढ़कर आए और सुनाने लगे कि हमारा ऐसा चिंतन है ताकि लोग समझने लगें, वाह! कितना ज्ञानी जीव है? अहो ! तुमने शास्त्र का नाम छिपा लियां आप चाहे कितने भी मेघावी हों, वरिष्ठ हों, कुछ भी हों, लेकिन अपने गुरू का नाम मत छिपानां जो गुरू का नाम छिपाता है, उसके सम्यक्ज्ञान में दोष लगता है और दर्शनावरणी व ज्ञानावरणी दोनों कर्मों का आस्रव होता हैं
श
केसरियाजी
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