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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 105 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
छिद्रान्वेषी हैं स्थिति देखेगा नहीं, परंतु स्थिति का व्याख्यान करेगां उसका व्याख्यान यदि क्षपक के कानों में
आ गया और परिणाम खराब हो गये, तो उसनें तो उसकी असमाधि करा दी इसीलिए ध्यान रखना, धर्मात्माओं से ग्लानि तो बहुत स्थूल है, पदार्थ मात्र के प्रति ग्लानि के भाव भी नहीं आना चाहिये, इसका नाम निर्विचिकित्सा हैं अभी तक इतना ही तो पढ़ा था कि मुनि के तन को देखकर, मलिन शरीर को देखकर ग्लानि नहीं करना, इसका नाम निर्विचिकित्सा अंग हैं परंतु अमृतचन्द्र स्वामी कह रहे हैं कि संसार के प्रत्येक द्रव्य को देखकर उसके स्वभाव को विचारना, और उसके स्वभाव को देखकर ग्लानि नहीं करना, इसका नाम निर्विचिकित्सा हैं
भो ज्ञानी! बाहर का मल तो जल्दी झड़ जाता है, पर बाहर के मल को देखकर तू अन्दर में मलिन हो गया, तो उस मल को झाड़ना बड़ा कठिन हो जायेगां पता नहीं कितनी पर्यायें लग जायें ध्यान रखना, आप अमृतचन्द्र स्वामी को सुन रहे हैं यदि आचार्यभगवन्तों, तीर्थंकरों की वाणी के अनुसार सारा राष्ट्र चलने लग जाए तो आपको किसी राजा की भी आवश्यकता नहीं उनकी वाणी ने कह दिया कि किसी के प्रति ग्लानि मत करों
हे मुमुक्षुओ! मृत पशु पड़ा हुआ है, दुर्गन्ध छोड़ रहा है आप दूर भाग रहे हों यदि आप वहाँ पर थोड़ा रुक जाते, तो आपको जिनवाणी का चिन्तन करने मिल जातां अहो! संसार की दशा, इस हाथी पर कभी सवारी करते थे उसे तुम प्यार से खिलाते-पिलाते थे आज उसी को देखकर तुम दूर भाग रहे हों हे ज्ञानी! जिस देहरूपी हाथी पर तू विराजा है, उस हाथी की भी यही हालत होगी चिन्ता मत करो, तुझे भी देखकर लोग दूर भागेंगें इसको तो लोग कम से कम आँखों से देख भी लेते हैं, पर मनुष्य के मुर्दे को तो बच्चे तक भी नहीं देखते हैं कहते हैं कि भूत लग जावेंगें आज तक किसी ने नहीं कहा कि पशु मुर्दा पड़ा है भूत लग जायेंगें वहाँ से लोग बड़े आराम से निकल जाते हैं पर जहाँ मनुष्य का दाहसंस्कार होता है, वहाँ संध्या हुई नहीं कि कहते हैं-बेटा! उते न जइयो, उते भूत आत हैं अरे! जिसने भूमिप्रदेश को भी भूत बना डाला, उस स्थान को जाने से रोकते हों अब ग्लानि करो तो किससे करो? करना ही है तो उन कार्यों से ग्लानि करो जिन कार्यों से चमड़े में आने को मिलता हैं ऐसे कार्यो से ग्लानि कर लोगे, तो फिर तुम्हें कहीं ग्लानि करने का मौका ही नहीं मिलेगां
__ भो प्रज्ञात्माओ! ध्यान रखना, संसार में साता व असाता सबके साथ हैं, चाहे मुनिराज हों, चाहे श्रावक असाता के उदय मेंमार्ग भूल गये या भटक गये, सो कहने लगे-वह धर्म अच्छा नहीं है जिसमें भूखे मरना पड़ता हैं किसी ने पहली बार अनन्तचतुर्दशी का उपवास कर लियां अभ्यास नहीं था, सो व्रतों को दोष देने लगे यह व्रत का दोष नहीं, तुम्हारी सामर्थ्य का दोष हैं रात्रि में पानी नहीं पिया, तो भी जी रहे कि नहीं ? पानी जीवन-धारण का निमित्त तो है, पर जीवन नहीं हैं जीवन पानी से नहीं चलता, जीवन तो आयुकर्म से
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