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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 99 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
निकांक्षित भी नहीं हो सकतां यह सम्यकदर्शन का अंग है और समाचीन-जीवन जीने की शैली भी हैं भो ज्ञानी ! तू करोड़ों का व्यापार फोन के विश्वास पर कर रहा है, फिर परमेश्वर पर अविश्वास क्यों है?
भो ज्ञानी! यह रोटी का टुकड़ा मेरा पेट भर देगा, उस पर विश्वास रखकर आप भोजन करते हों रोटी पर कितनी श्रद्धा है, अहो! एक पुद्गल के टुकड़े पर इतना विश्वास, तो क्या देव-शास्त्र-गुरू उस रोटी के टुकड़े से भी गये गुजरे हैं ? एक इंजीनियर हाथ में श्रीफल लिये और एक तांबे की छड़ लिये जा रहा है, खेत में घुमाकर बोले-यहाँ पानी है, तो विश्वास हो जाता है कि वहाँ पानी हैं जब भूमिगत पानी को तुम श्रद्धा से पकड़ सकते हो, तो इस भगवती आत्मा में तुम भगवान को क्यों नहीं पकड़ पा रहे ? यह सब श्रद्धा ही तो हैं जैसे, भूमि में पानी है, ऐसे ही देह में परमात्मा है; परंतु जब तक खोदोगे नहीं, तब तक पानी नहीं, ऐसे ही जब तक खोजोगे नहीं तब तक परमेश्वर नहीं परंतु शंका में भगवान नहीं मिलेंगे, निःशंकता से ही भगवान मिलेंगें पहले भगवान मिलेंगे, फिर भगवान बन जाओगें
भो ज्ञानी! यही है द्वैत-अद्वैत भावं भगवान से मिलना, यह द्वैत-भाव है और भगवान बनना, यह अद्वैत-भाव हैं इसलिये किसी में शंका मत करों निःशंकितअंग को गहराई से समझ लेना, जिनेन्द्र के वचन में शंका मत करनां किसी व्यक्ति ने अपनी असमर्थता से कोई गलत काम कर लिया हो, उसे जिनदेव का काम मत कहनां वह तो उस व्यक्ति का दोष है, जिनशासन का दोष नहीं हैं जिनदेव का शासन निज पर अनुशासन की बात करता है, निज पर शासन ही जिनेन्द्र का शासन है और जिसका निज पर शासन नहीं है, वह जिनेन्द्र के शासन में ही नहीं हैं भो चेतन! यदि करना ही है तो प्रभु बनने की वांछा करो, लेकिन बिना वांछा करे भगवान बनने वाले भी नहीं इस अवस्था में तो आपको वांछा करनी ही होगी जब तुम निःशंकित
और निःकांक्षित होकर शुद्धोपयोग दशा में प्रवेश कर जाओगे तो संपूर्ण वांछायें आपकी स्वयमेव समाप्त हो जायेगी, परंतु ध्यान रखना जिनेन्द्र के शासन में लिखा है कि जो कुछ मिलता है,वह माँगने से नहीं मिलतां वहाँ दुआयें भी काम नहीं आतीं और दवायें भी काम नहीं आतीं कुछ लोग दुआओं में जी रहे हैं, कुछ दवाओं में जी रहे हैं, परंतु दबा नहीं रहें दबा दें, तो दुआ भी लग जाये और दवा भी लग जायें परंतु दबाना तो पड़ेगा ही तुम पाप को दबा दो, पुण्य को उठा लों भो ज्ञानी! दुआयें भी लगेगीं, दवा भी लगेगी, लेकिन इस मिथ्यात्व को छोड़ दों यह जिनशासन है, वरदानवाला शासन नहीं है अतः मात्र विश्वास करके भगवान के चरणों में आना, पर व्यापारी बनकर नहीं
भो ज्ञानी! गुरुओं के पास भी आना, परंतु व्यापारी बनकर नहीं; क्योंकि आप धन से धर्म को मापने लग जाओगें अरे! धन तेरे पुण्य-पाप का परिणमन हैं अतः यह देने-लेने वाले शक्तिवान नहीं हैं लेने-देने का काम तो बनिया करते हैं, रागी-द्वेषी करते हैं; परमेश्वर से लेने-देने की बात मत करों 'गीता' को आपने सुना होगा, नारायणकृष्ण, अर्जुन को संकेत कर रहे हैं- हे पार्थ! जो कर्म तू कर रहा है, वह तेरे अधिकार में है
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