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मातृ-भूमि मेवाड़
मेवाड... .। प्रकृति के सुरम्य वातावरण मे पलने वाला मेवाड ।
जिसका जीवन सदा मृत्यु की मदमत्त जवानी पर मचलता रहा ! जिसका स्वाभिमान सदा तलवार व त्याग की तीक्ष्ण धार पर ही खिलवाड करता रहा ! जिसका वचहृदय, जो
विकराल काल से टकरा कर टूट गया, पर झुफ न सफा !
किसी भी देश, राष्ट्र एम समाज का आदर्श उसके अतीत के इतिहास, विद्यमान सभ्यता, सस्कृति एव धार्मिक-सामाजिक रीति-रिवाजो के माध्यम से जाना जाता है ।
मेवाह का भौगोलिक दर्शन नि सदेह प्राकृतिक विपुल-वैभव से भरा-पूरा इस विशाल प्रात का अग-प्रत्यग अपने अद्वितीय सौन्दर्य का एक अनूठा ही आदर्श बता रहा है । जिसे देखकर प्रत्येक जीवधारी का मन वागवाग हो जाना स्वाभाविक है। विभिन्न प्रकार के वृक्षों की हरीतिमा से परिवेष्ठित पुण्यभूमि पर जल प्रपात की धवल धाराएं किल्लोल करती हुई, उसके कण-कण मे अपना सौंदर्य विखेर देती है। रविरश्मियां उस प्रवाहित जल राशि के आवरण मे छिपी हुई, धवल धरा का स्पर्श कर निहाल हो जाती है । आस-पास की भीमकाय पर्वत मालाएं भी अपने गर्वोन्नत मस्तक उठाए उसकी सुरक्षा के लिए दुर्भेद्यदुर्जय दीवार सी बनी हुई अपने कर्तव्य पालन मे पूर्णत-सतर्क है।
उसी सुरम्य-सुभव्य वातावरण मे पला हुआ मेवाड । जिसे प्रकृति के पावन-पटल पर प्राकृतिक वैभव का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। वहीं मेवाड समय २ पर विदेशी दस्युओ से अपने मानसम्मान और धर्म की रक्षा के लिये निरतर बलिदान देने मे भी ससार के समक्ष अग्रणीय सिद्ध हुआ है।
मेवाडी वीर, जिन्होंने सदैव मृत्यु मे भी अपने को मुस्कराते देखा है। जिनका वोर हृदय मृत्यु की भयकर हुकार से भी डोलित-कपित नही हो सका । जिनका जीवन सदैव तलवार वी धार पर ही अठखेलियां करता रहा । उसी मेवाड की धर्मपरायण वीरागनाए भी रणचडी की तरह समर भूमि मे उतर कर अनार्यों का दलन करती हुई हँसते २ अपनी मातृभूमि व शील की रक्षा के लिए मर्दो से पीछे नहीं रही हैं । जलती हुई जौहर की ज्वाला के बीच सपूर्ण शृगार करके अपने प्रियतम के पवित्र पद चिन्हो पर हसते २ जलकर भस्मीभूत हो जाती हैं ।
इस प्रकार वीरभूमि मेवाड का अखण्ड गौरव यद्यपि अनेक विकट परिस्थितियो की सकीर्ण गली मे से अवश्य गुजरा है । तथापि स्वाभिमानता वीरता का मार्तण्ड तिरोहित न होकर अधिक चमका और दमका है।