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दशम अध्याय .... ...
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२-मांसाहार :: .. . ... ... ... श्राहार की आवश्यकता... ... आहार - भोजन जीवन-निर्वाह एवं शरीर-संरक्षण के लिए प्रावश्यक पदार्थ है। जीवन की अन्य आवश्यकताओं में आहार सब से पहली आवश्यकता है। जब संसारी आत्मा एक योनि के आयुष्य को भोग कर दूसरी योनि में जन्म लेता है, तो सबसे पहले आहार लेता है और उसके बाद औदारिक शरीर, अंगोपांग, इन्द्रिय आदि के पुद्गलों को ग्रहण करता है । इस तरह शरीर को स्वस्थ एवं व्यवस्थित रखने .
के लिए आहार आवश्यक साधन है । क्योंकि धर्म-साधना के लिए . शरीर का होना ज़रूरी है । नर-देह के द्वारा ही मनुष्य धर्म के, मोक्ष .
के पथ पर आगे बढ़ सकता है और शरीर को टिकाए रखने के लिए प्रहार भोजन पहली आवश्यकता है।.. . ... ... . ... . ... ... श्राहार और मन का संबंध .
भारतीय संस्कृति के सभी विचारक एव महापुरुष इस बात में एकमत हैं कि मनुष्य के जीवन पर प्रहार का असर होता है । जैनागमों में इस बात पर जोर दिया गया है कि मनं को, विचारों को शुद्ध एवं सात्त्विक रखने के लिए आहार एवं आहार प्राप्त करने के साधनव्यापार एवं उद्योग-धन्धे सात्त्विक एवं अल्प प्रारंभ वाले होने चा.
हिए । महारंभ से प्राप्त पदार्थ मन को प्रशान्त बनाए विना नहीं .... रहते । यह लोक कहावत विल्कुल सत्य है कि जैसा खावे. अन्न, पैसा ।
होने मन ।" आजकल प्राय: यह प्रश्न पूछा जाता है कि माला फेरने में, संवर-सामायिक करने में तथा अन्य धार्मिक साधना करने में मन नहीं लगता, इसका क्या कारण है ? इसका एक कारण हमारे भोजन की