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प्रश्नों के उत्तर ..
दिन संकल्प-विकल्प एवं पार्त-रौद्र ध्यान में फंसा रहता है। उस के
मन में एक क्षण के लिए भी शान्ति की अनुभूति नहीं होती। ..... वस्तुतः जुयारी का जीवन पतनोन्मुखी जीवन है । आर्थिक दृष्टि
से भी वह कभी ऊपर नहीं उठता।जए के द्वारा प्राप्त किया गया धन कभी लाभप्रद एवं शान्तिदायक नहीं होता। फिर भी कुछ लोग जमा खेलने में गौरवानुभूति करते हैं । जुयारियों का कहना है कि दीपा
वली के दिन जा अवश्य खेलना चाहिए। इससे किस्मत की परीक्षा _होती है। कुछ लोग यह भी कहते नहीं सकुचाते कि जो व्यक्ति दीपा
वली को जमा नहीं खेलता, वह मर कर गधा होता है। परन्तु यह विल्कुल.असत्य है। किस्मत की परीक्षा इमानदारी से होती है। प्रामाणिकता एवं सत्यनिष्ठा से प्राप्त किया हुआ पैसा पल्लवित, पुष्पित एवं फलित होता है: तथा सदा धर्म के काम में व्यय होता है. ! रही . गधे बनने, न बनने की बात, वह जूए पर नहीं, कर्म पर आधारित है। जो व्यक्ति माया-छल, कपट एवं ठगी करता है, झूठ बोलता है. और झठ तोलता है, वह पशु योनि (गधे आदि) को प्राप्त होता है। यह सब बातें जुआ खेलने वाले व्यक्तियों में पाई जा सकती हैं । छल, कपट, दग़ा, विश्वासघात आदि दुगुण उनमें विशेष रूप से पाए जाते हैं और गधे आदि जानवरों की योनि उन्हीं को मिलती है जो दुर्व्यसनों में फंसे रहते हैं.। अस्तु. यह मानना नितांत असत्य है कि जमा नहीं खेलने से मनुष्य गधा बनता है। भले आदमियों को ऐसे पापकार्यों से बचे रहना चाहिए जिनमें प्रामाणिकता, ईमानदारी एवं सत्यनिष्ठा का त्याग करके छल-कपट से दूसरों के धन पर हाथ फेरा जाता है।*
* इस संबंध में जानकारी प्राप्त करने के जिज्ञासु पाठक मेरी दीपमाला. . और भगवान महावीर' नामक पुस्तक देखें।
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