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दशम अध्याय
केलने वाला है । इतिहास इस बात का साक्षी है । धर्म ग्रन्थों एवं इतिहास के पन्नों पर ऐसे अनेकों उदाहरण अंकित हैं, जो इस सत्य का पूरा-पूरा समर्थन करते हैं।' धर्मराज युधिष्ठिर जैसे सत्यवादी, अर्जुन जैसे धनुवरी, भोम जैसे गदावारी, नकुल सहदेव जैसे वीर योद्धाओं को जंगलों में परिभ्रमण कराने वाला कौन था ? यही जत्रा तो था । यदि धर्मराज में जूए का दुर्गुण नहीं होता तो दुनिया में कोई शक्ति नहीं थी कि जो भरी सभा में द्रौपदी की लज्जा का अपहरण करने का तथा पाण्डवों को राजसिंहासन से उतार कर बन में भेजने का दुःसाहस कर सकती । इस शैतान जूए ने ही नल जैसे शक्तिशाली राजा को भी दुर्दशा की थी और उसकी पत्नी महासतो दमयन्ती को जंगलों की खाक छाननी पड़ी थी। इस तरह जूम्रा जीवन का सर्वतोमुखी विनाश करने वाला है। यह दुर्गुणों का स्रोत है, दुःख, संकट और मुसीबतों का जनक हैं ।
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ताश (Paycard ) शतरंज आदि खेलों पर पैसा लगा कर खेलना जया कहलाता है। इस तरह के और भी खेल जिनमें शर्त लगा कर खेला जाता है तथा सट्टा आदि व्यापार भी जूए के अर्न्तगत ही गिने जाते हैं । इसे जूना कहने का कारण यह है कि यह मनुष्य को सद्गुणों एवं सुख-संपत्ति से जूना (जुदा अलग) करके दुःखी एवं दुगुर्णी बना देता है । इस दुर्व्यसन का सेवी व्यक्ति शासन एवं समाज का अपराधी गिना जाता है। पुलिस उस पर सदा कड़ी निगाह रखती है। उसे कोई मान-सम्मान की निगाह से नहीं देखता । वह जहां जाता है वहां अपयश एवं निरादर पाता है। दुनिया में उसका कोई विश्वास नहीं करता । वह हमेशा चिन्ताओं से
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घिरा रहता है, रात
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