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वर्णमाला ]
भाग १ : व्याकरण
रहता है कुछ विशेष स्थलों पर 'इ' शेष रहने पर भी तो लुप्त व्यञ्जन के स्थान पर लघु ध्वनि से उच्चारित 'य् विकल्प से होता है। इसे ही 'य' श्रुति कहते हैं। मागधी आदि प्राकृतों में स्थिति कुछ भिन्न है।
(घ) श्, ष् तथा विसर्ग का प्रयोग नहीं होता है । 'श्' और '' सर्वदा [मागधी प्राकृत में ष्; स् >श् में परिवर्तित होते हैं। जैसे-पुरुषः-पुलिशे, । हंसः-हंशे] 'स्' में तथा विसर्ग 'ओ' अथवा 'ए' में परिवर्तित होते हैं । जैसे.यशः - जसो, मनुष्यः-मणुस्सो, स:-से ।
(ङ) संयुक्तावस्था को छोड़कर अन्यत्र कहीं भी व्यञ्जन वर्ण स्वरहीन (हलन्त) प्रयुक्त नहीं होता है । किञ्च; प्रायः समानवर्गीय या समान आकार के व्यञ्जन ही संयुक्त रूप में प्रयुक्त होते हैं, अन्यवर्गीय वर्णों के साथ नहीं। जैसेसव्व-सर्व, कल्लाण - कल्याण, चक्क - चक्र, पुप्फ = पुष्प ।
(च) अनुस्वार () और अनुनासिक (') में निश्चित भेद परिलक्षित नहीं होता है । डा० आर० पिशल के अनुसार-'जहाँ अनुस्वार का पता लग जाता है कि यह 'न्' या 'म्' से निकला है तो उस शब्द में मैं अनुस्वार मानता हूँ'; अन्यथा नियमितरूप से अनुनासिक मानता हूँ।' ]
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